शिवाजी ने अपनाए थे महाराणा प्रताप से युद्ध के तरीके, 30 साल तक छू भी नहीं पाया था अकबर

महान देशभक्त योद्धा, अदभुत शौर्य और साहस के प्रतीक महाराणा प्रताप की शनिवार को 480वीं जयंती है. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई, 1540 को कुंभलगढ़ दुर्ग (पाली) में हुआ था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महाराणा प्रताप की जयंती पर उन्हें याद करते हुए नमन किया. पीएम मोदी ने महाराणा प्रताप को उनकी जयंती पर याद करते ट्वीट किया, 'भारत माता के महान सपूत महाराणा प्रताप को उनकी जयंती पर कोटि-कोटि नमन. देशप्रेम, स्वाभिमान और पराक्रम से भरी उनकी गाथा देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी.'


- Narendra Modi (@narendramodi) May 9, 2020
पीएम मोदी के साथ ही देश के तमाम नेताओं ने भी देश के वीर सपूत महाराणा प्रताप को याद किया. मेवाड़ के 13वें राजा महाराणा प्रताप के शौर्य और आत्म बलिदान का सम्मान करने के लिए सभी पार्टी, संगठन और संस्थाओं ने एक साथ उनको नमन किया. आइए, महाराणा प्रताप की वीरता और युद्ध कौशल के बारे में जानते हैं. उनकी छिटपुट या गुरिल्ला जैसी युद्ध की पद्धति को कई सालों बाद शिवाजी महाराज जैसे महान योद्धाओं ने भी अपनाया था.

जन्म, वंश और आराध्यदेव एकलिंग महादेव
राजपूताना राज्यों में मेवाड़ का अपना एक विशिष्ट स्थान है जिसमें इतिहास के गौरव बाप्पा रावल, खुमाण प्रथम, महाराणा हम्मीर, महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा और उदयसिंह ने जन्म लिया. मेवाड़ के महाराजा उदयसिंह और माता राणी जीवत कंवर के घर में महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था. वे राणा सांगा के पोते थे. मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के कुल देवता एकलिंग महादेव हैं. आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है. मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने 8वीं शताब्‍दी में उदयपुर में इस मंदिर का निर्माण करवाया और एकलिंग की मूर्ति की प्रतिष्ठापना की थी.
बाल्यकाल: कीका और चेतक की कहानी
बचपन और युवावस्था में महाराणा प्रताप को कीका नाम से भी पुकारा जाता था. ये नाम उन्हें जंगल में पिता के नजदीकी भील परिवारों से मिला था. भीलों की बोली में कीका का मतलब बेटा होता है. महाराणा प्रताप के पास शुरू से ही चेतक नाम का एक सबसे प्रिय घोड़ा था. उनकी वीरता के साथ ही लोग चेतक की स्वामी भक्ति की कहानियां भी सुनाते हैं.
मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित हल्दीघाटी युद्ध
देश पर आक्रमण करने वाले विदेशी और खूंखार मुगलों से महाराणा प्रताप ने कई लड़ाइयां लड़ीं. इनमें सबसे ऐतिहासिक लड़ाई हल्दीघाटी मैदान में हुई. हल्दीघाटी का युद्ध मध्यकालीन भारतीय इतिहास का सबसे चर्चित युद्ध है. इसमें मानसिंह की अगुवाई वाली अकबर की विशाल सेना से उन्होंने सामना किया. साल 1576 में हुए इस जबरदस्त युद्ध में करीब 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया था. इसमें महाराणा प्रताप का घोड़ा चेतक जख्मी हो गया था. इसके बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगल आक्रांताओं का कब्जा हो गया था. अधिकांश राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए. इन सबके बीच महाराणा प्रताप ने कभी भी स्वाभिमान का साथ नहीं छोड़ा.

कभी स्वीकार नहीं की मुगल आक्रांताओं की अधीनता
महाराणा प्रताप ने कभी भी मुगल बादशाह जलालुद्दीन मोहम्मद अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की. अकबर की अनीति और धोखे से भरी 30 वर्षों के लगातार कोशिशों के बावजूद वह महाराणा प्रताप को बंदी बनाने की नापाक हसरत पूरी नहीं कर सका. महाराणा ने कई सालों तक लगातार संघर्ष किया. साल 1582 में दिवेर के युद्ध में महाराणा प्रताप ने उन क्षेत्रों पर फिर से कब्जा जमा लिया था जो कभी मुगलों ने हथिया लिए थे. इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉ ने मुगलों के साथ हुए इस युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा था. 1585 तक लंबे संघर्ष के बाद महाराणा प्रताप अपने मेवाड़ को पूरी तरह मुक्त करने में सफल रहे. महाराणा प्रताप फिर से मेवाड़ के सिंहासन पर बैठे थे.
महाराणा प्रताप और उनके अस्त्र-शस्त्र
महाराणा प्रताप की लंबाई 7 फीट और वजन 110 किलोग्राम था. उनका भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था. उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो वजन था. ये सभी आज भी चित्तौड़गढ़ और कुंभलगढ़ के संग्रहालयों में रखे हैं. 1596 में शिकार खेलते समय उन्हें चोट लगी जिससे वह कभी उबर नहीं पाए. 19 जनवरी 1597 को सिर्फ 57 वर्ष आयु में चावड़ में उनका निधन हो गया.
अकबर से लेकर लिंकन तक बने प्रशंसक
कहते हैं कि महाराणा प्रताप के निधन के बारे में जानकर अकबर की आंखें भी छलक गई थी. मुगल दरबार के कवि अब्दुर रहमान ने लिखा है, 'इस दुनिया में सभी चीज खत्म होने वाली है. धन-दौलत खत्म हो जाएंगे, लेकिन महान इंसान के गुण हमेशा जिंदा रहेंगे. प्रताप ने धन-दौलत को छोड़ दिया, लेकिन अपना सिर कभी नहीं झुकाया. हिंद के सभी राजकुमारों में अकेले उन्होंने अपना सम्मान कायम रखा.'
हल्दीघाटी के गाइड सैलानियों को यह भी सुनाते हैं कि एक बार अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन भारत के दौरे पर आ रहे थे, तो उन्होंने अपनी मां से पूछा. मैं आपके लिए भारत से क्या लेकर आऊं. उनकी मां ने कहा था भारत से तुम हल्दीघाटी की मिट्टी लेकर आना जिसे हजारों वीरों ने अपने रक्त से सींचा है.

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