समुद्र मंथन: देवताओं और असुरों में ऐसे हुआ रत्नों का बंटवारा, निकले थे ये 14 रत्न

Samudra Manthan: समुद्र मंथन का सृष्टि की रचना को व्यवस्थित करने में विशेष योगदान रहा. इस समुद्र मंथन को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. लेकिन यहां पर मंथन से जो रत्न निकले उनका बंटवारा कैसे हुआ और कौन कौन से रत्न निकले इनके बारे में बताया जा रहा है. तो आइए जानते हैं समुद्र मंथन से निकले रत्नों के बारे में.

इसलिए हुआ समुद्र मंथन एक पौराणिक कथा के अनुसार बलि नाम का एक राजा था. जो दैत्यों में सबसे बलशाली था, इसीलिए इसे दैत्यराज कहा गया. बलि ने अपनी शक्ति के बल पर तीनों लोकों पर राज कर लिया. उधर दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण देवताओं के राजा इंद्र कष्ट भोग रहे थे. बलि की लगातार बढ़ती शक्ति से देवगणों में हलचल मच गई और वे भयभीत हो गए. आने वाली विपत्ति से निपटने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के पास पहुंचकर प्राण रक्षा की गुहार लगाई. सभी देवताओं की बातों को सुनकर भगवान विष्णु ने समुद्र मंथन का सुझाव दिया. लेकिन इससे पहले देवताओं से संधि करने के लिए कहा. दैत्यों को समझाने के बाद वे राजी हो गए. इसके बाद देवताओं और दैत्यों के बीच समुद्र मंथन की प्रक्रिया आरंभ हुई.
भगवान विष्णु का कच्छ अवतार समुद्र मंथन की पूरी लीला आदि शक्ति ने रची थी. ताकि भगवान विष्णु कच्छप अवतार में अवतरित हो सकें और सृष्टि को बेहतर बनाया जा सके. इस अवतार को कूर्म अवतार भी कहा जाता है. यह अवतार लेकर भगवान विष्णु ने क्षीरसागर के समुद्र मंथन के समय मंदार पर्वत को अपने कवच पर संभाला रखा था और मंदर पर्वत और नागराज वासुकि की सहायता से मंथन से 14 रत्नों की प्राप्ति की.
समुद्र मंथन से निकले ये 14 रत्न 1.विष 2. घोड़ा 3. ऐरावत हाथी 4. कौस्तुभ मणि 5. कामधेनु गाय 6. पारिजात पुष्प 7. देवी लक्ष्मी 8. अप्सरा रंभा 9. कल्पतरु वृक्ष 10. वारुणी देवी 11. पाच्चजन्य शंख 12. चंद्रमा 13. भगवान धन्वंतरी 14 अमृत
रत्नों का बंटवारा
विष: मंथन में सबसे पहले विष ही निकला. जब इसके बंटवारे की बारी आई तो दैत्य और असुर दोनों ने इसे लेने से मना कर दिया. अंत में भगवान शिव ने इस विष को अपने गले में उतार लिया. जिससे उनका गला नीला पड़ गया और नाम नीलकंठ हो गया.
घोड़ा: मंथन से सात मुखों वाला सुंदर सफेद रंग का घोड़ा निकला जिसे दैत्य राज बलि ने अपने पास रख लिया. जो बाद में इंद्र को प्राप्त हुआ. ऐरावत हाथी: इस हाथी को इंद्र ने प्राप्त किया जो बाद में उनकी सवारी बना. यह सफेद हाथी ही इंद्र का सवारी है.
कौस्तुभ मणि: भगवान विष्णु ने इस मणि को अपने मुकुट में धारण किया.
कामधेनु गाय: इस मंथन से कामधेनु गाय की प्राप्ति हुई. यह गाय अदभूत शक्तिओं से पूर्ण थी. बाद में यह गाय ऋषियों को दे दी गई.
पारिजात पुष्प: यह पुष्प सभी पुष्पों में सबसे खूबसूरत माना गया है. पूजा अर्चना में इस पुष्प का विशेष महत्व है. इसके सभी भागों को पूजा में अलग अलग तरह से प्रयोग में लाते हैं. इसे देवताओं ने अपने पास रख लिया.
मां लक्ष्मी: मंथन के दौरान रत्न के रूप में माता लक्ष्मी की प्राप्ति हुई. लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए असुरों ने भी प्रयास किया लेकिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु को प्राप्त हुईं.
अमृत कलश: मंथन से जब धन्वंतरि देव प्रकट हुए तो उनके हाथ में अमृत कलश भी था. जिसे पाने के लिए संग्राम छिड़ गया. बाद में अमृत को असुरों से प्राप्त करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया और अमृत को देवताओं को दे दिया जिससे वे अमर हो गए. अप्सरा रंभा
अप्सरा रंभा: ये एक कुशल नृत्यांगना थीं. जिसे इंद्र ने अपने इंद्रलोक में स्थान दिया.
कल्पतरु वृक्ष: इसी वृक्ष पर पारिजात का पुष्प लगता है. इंद्र ने इसे सुरकानन में स्थापित किया. स्कंदपुराण और विष्णु पुराण में पारिजात को ही कल्पवक्ष कहा गया है.
वारुणी देवी: ये देवी सुरा लेकर मंथन के दौरान प्रकट हुईं. जिसे असुरों को दे दिया गया.
पाच्चजन्य शंख: शंख की प्राप्ति मंथन से हुई. जिसे भगवान विष्णु को समर्पित किया गया.
चंद्रमा: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को जल और मन का कारक माना गया है. मंथन से जब चंद्रमा की उत्पत्ति हुई तो भगवान शिव ने इसे अपने सिर सजा लिया.
भगवान धन्वंतरी: इन्हें आयुर्वेद का जनक कहा जाता है. मान्यता है कि धन्वंतरी भगवान विष्णु के अंश है. लोक कल्याण के लिए इन्होंने अपना ज्ञान ऋषि-मुनियों और वैद्यों को प्रदान किया.
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