इन आयुर्वेदिक औषधियों से दें बैक्टीरिया-वायरस को मात

आज के माहौल में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाना और तमाम तरह के बैक्टीरिया और वायरस से सुरक्षा कवच तैयार करना सबसे ज्यादा जरूरी हो चुका है। ऐसे में हमारे देश की प्राचीनकाल से प्रचलित चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की बड़ी निर्णायक भूमिका मानी जा रही है।

हरड़: चरक संहिता में वर्णित पहला रसायन हरीतकी यानी हरड़ है। यह पाचनशक्ति बढ़ाने, एसिडिटी कम करने और कब्ज की समस्या दूर करने में सहायक है। इसके सेवन से अल्सर बनने से भी रोका जा सकता है। यह शरीर को डिटॉक्सिफाई करने का काम करती है। साथ ही शरीर में विटामिन मिनरल आदि अच्छी तरह जज्ब करने में भी मदद करती है। इसे एक बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल और एंटीवायरल माना गया है। लेकिन डायरिया और गर्भावस्था में इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
आंवला: विटामिन सी का स्रोत आंवला एक बेहतरीन एंटीऑक्सीडेंट है। इसके नियमित सेवन से स्नायु तंत्र, अस्थि मज्जा और ज्ञानेंद्रियों की कार्यक्षमता बढ़ती है। एंटी एजिंग गुणों से युक्त आंवला गैस, नेत्र रोगों, हेपेटाइटिस आदि में फायदा पहुंचाता है और हार्ट, ब्रेन, लिवर को भी स्वस्थ रखता है। यह शरीर का डिटॉक्सिफिकेशन भी करता है।
गिलोय: रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के मामले में गिलोय का कोई जोड़ नहीं। यह लिवर को स्वस्थ रखने के साथ किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचाव करता है। इसके सेवन से बुखार, एलर्जी की समस्या, डायबिटीज आदि में भी लाभ होता है। साथ ही यह कोलेस्ट्रॉल और यूरिक एसिड पर काबू करके आर्थराइटिस के दर्द आदि में भी राहत पहुंचाता है।
हल्दी: हल्दी के एंटीऑक्सीडेंट और एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीफंगल, एंटीबैक्टीरियल गुण सर्वविदित हैं। इसे ब्रेन, हार्ट, लिवर के लिए काफी गुणकारी माना गया है। इसके नियमित सेवन से शरीर की इम्यूनिटी पावर में भी इजाफा होता है।
अश्वगंधा: अश्वगंधा को आयुर्वेद शास्त्र में रिजुवनेटिंग हर्ब माना गया है। यह डिप्रेशन से भी राहत दिलाती है। ब्रेन सेल्स को एक्टिव रखने और शरीर के इम्यूनिटी सिस्टम को इंप्रूव करने में बड़ी भूमिका का निर्वाह करती है। साथ ही इसे इनफर्टिलिटी की समस्या दूर करने वाली भी माना गया है।
मुलेठी: पान में इसका काफी उपयोग होता है। यह त्वचा, आंखों, बालों, फेफड़ों, लीवर और पेट के लिए गुणकारी औषधि है। यह जड़ी स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, पेट के अल्सर और अस्थमा पर नियंत्रण रखने वाली मानी गई है। हां, यह दिन भर में 3 ग्राम से ज्यादा नहीं लेना चाहिए। पानी में इसे उबालकर छानने के बाद वह पानी पीना चाहिए। इससे रेस्पिरेट्री इंफेक्शन भी कम होता है।
सोंठ: सोंठ को एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और एंटीकैंसर हर्ब माना गया है। यह पाचनशक्ति को बढ़ाने के साथ वात रोगों में भी आराम देती है। जी मिचलाना, उल्टी, मसल पेन, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल आदि समस्याओं में इसका सेवन उपयोगी होता है।
तुलसी: तुलसी को तमाम प्रकार के इंफेक्शन और बैक्टीरिया से रक्षक करने वाली और इम्यूनिटी इंप्रूव करने वाली हर्ब माना गया है। इसके सेवन से रेस्पिरेट्री ट्रैक्ट इंफेक्शन, हाइपरटेंशन, लीवर डिजीज, डायबिटीज आदि में आराम मिलता है।
शतावरी: शतावरी का प्रयोग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए तो किया ही जाता है। साथ ही तमाम प्रकार के स्त्री रोगों के इलाज के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। यह हार्मोन का संतुलन सही रखने के साथ उनकी कार्यक्षमता भी बढ़ाती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट और एंटी एजिंग गुण भी हैं।
एलोवेरा- त्वचा की नमी और आभा को बरकरार रखने वाली एलोवेरा शरीर में कई तरह से फायदा पहुंचाती है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीऑक्सीडेंट गुणों की बहुतायत है। साथ ही यह ब्लड शुगर को कम करती है और झुर्रियों से निजात दिलाती है। दांतों को स्वस्थ रखने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।

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