'' शाम-ए-गजल '' में कई कवियों बांधा समां

जासं, नवादा : महानगरों की अपेक्षा छोटे शहरों या कस्बाई इलाकों में साहित्य और सृजन का महत्वपूर्ण कार्य हो रहा है । खास कर प्रतिरोध की संस्कृति के विभिन्न उपादानों का बेहतर उपयोग यहीं से शुरू होता रहा है । जुटान के दसवें आयोजन '' शाम-ए-गजल '' की अध्यक्षता करते हुए देश के शीर्ष गजलकार देवेन्द्र आर्य , गोरखपुर ने इन्हीं अल्फाजों के साथ गजल यात्रा प्रारम्भ की । ़फारसी , उर्दू गजल की रिवायती जकड़बंदी से आजाद होकर हिदी गजल ने लंबी यात्रा तय की है जिसके सहयात्री आज के जुटान मंच पर ऑनलाइन उपस्थित देखे गए ।मुजफ्फरपुर बिहार से डॉ. भावना , डॉ. पंकज कर्ण , पटना से समीर परिमल , मुंगेर से अनिरुद्ध सिन्हा और नवादा से अशोक समदर्शी एवं शम्भु विश्वकर्मा ने दुष्यंत की परम्परा के गजलों से जुटान के सभी ऑनलाइन श्रोताओं को मोह लिया । '' रूठे सागर को मनाने का हुनर आता है / चाँद को ख्वाव दिखाने का हुनर आता है '' जैसी रूहानी पंक्तियों के बहाने डॉ. भावना ने वर्तमान की चेतना से अवगत कराया तो '' तेरे मेरे बीच क्या था '' के प्रश्नवाचक को उत्तरित कर समीर परिमल ने अंधी दौड़ को शब्द दिया । उसी प्रकार अनिरुद्ध सिन्हा ने '' बुढ़ापे में यूं कैद रखा है बच्चों ने '' पंकज कर्ण ने '' तेरी मेरी ये जो दौलत है चली जायगी '' जैसे वजनदार शेर पढ़कर समाज को सन्देश दिया । '' आस्तीन से निकले सांप घर-घर में पाले गए / शक्ल इंसान की दी गई जहर मजहब के डाले गए '' जैसे शेरों का गुच्छे पेश कर देवेन्द्र आर्य ने शाम-ए-गजल को सार्थक बना दिया । अशोक समदर्शी और शम्भु विश्वकर्मा ने भी जनवादी गजलों से इस राष्ट्रीय स्तर के शायरों के बीच बेहतर प्रस्तुति दी । संयोजक शम्भु विश्वकर्मा ने सभी गजलकारों का स्वागत किया तथा अंत में धन्यवाद ज्ञापन से कार्यक्रम समाप्ति की घोषणा की गई।

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Posted By: Jagran
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