खेत हो रहे खाली, फिर आई बंदूकों के गरजने की बारी

बेतिया। जिले में धान की कटनी शुरू होने तथा खेत खाली होने के बाद विवादित जमीनों पर कब्जा के लिए खूनी संघर्ष का पुराना इतिहास रहा है। ऐसे जमीनों पर कब्जा की साजिश एक बार भी शुरू हो गई है। विभिन्न थाना क्षेत्रों के कई इलाकों में विवादित जमीनों पर तैयार धान की फसलों को काटने और जमीन कब्जाने के लिए शक्ति संचय का खेल शुरू है। गवई इलाकों में गुटबाजी तेज हो गई है। जमीन पर कब्जा के लिए यहां मारपीट, गोलीबारी आम बात है। जमीन कब्जाने के लिए फायरिग का भी पुराना इतिहास रहा है। यही कारण है कि माह अक्टूबर शुरू होते ही जिले के तकरीबन सभी थाने में भूमि विवाद से जुड़े मामले बढ़ जाते हैं। नवंबर से जनवरी तक प्राथमिकी की संख्या में भी बढ़ोतरी होती है। विवादित जमीनों का मामला सुलझाने में पुलिस को काफी एनर्जी का खपानी पड़ती है।

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विवादित जमीनों की लंबी फेरहिस्त, 70 फ़ीसदी प्राथमिकी की जड़ में भूमि विवाद
कृषि बहुल जिले में विवादित जमीनों की लंबी फेहरिस्त है। अमूमन विभिन्न थाना में दर्ज 70 फ़ीसदी मामले की जड़ में कहीं न कहीं भूमि विवाद ही रहता है। जिले का शायद ही कोई ऐसा गांव है जहां भूमि विवाद को लेकर मारपीट नही होती हो। सेवानिवृत्त पुलिस पदाधिकारी संतोष तिवारी का कहना है कि जिले के विभिन्न थानों में में आधे से ज्यादा मामले भूमि विवादों के कारण ही दर्ज होते हैं। अगर भूमि विवाद का निपटारा हो जाए तो प्राथमिकी की संख्या में भी काफी कमी आ जाएगी।
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जमीन कब्जाने के लिए होती है हिसक झड़प
जमीनों पर कब्जा करने के लिए यहां अक्सर हिसक झड़प होते रहती है। लाठी फट्टे भी निकलते हैं, बंदूके भी गरजती है। झड़प में लोगों की जान भी जाती है। इसके बाद भी प्रशासन भूमि विवादों के स्थाई निपटारे के लिए ठोस पहल नहीं करती। कोर्ट में भी मामला लंबित रहने के कारण विवादों को हवा मिलता है। कई बार अंचल में भी कर्मियों की लापरवाही या मिलीभगत के कारण साफ-सुथरी जमीन भी विवादित बन जाती है।
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कोट--
पुलिस सदैव चौकन्नी है। इस तरह की शिकायत मिलने पर त्वरित कार्रवाई होती है। भूमि विवादों के निपटारे के लिए थानाध्यक्ष को सीओ के साथ संयुक्त जनता की दरबार लगाकर कार्रवाई का निर्देश दिया गया है।
लालमोहन प्रसाद, डीआईजी, चंपारण रेंज
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