माँ दुर्गा का ऐसा मंदिर जहा इंद्र भी आते है भर्मण के लिए ,माता ने खुद दर्शन देकर करवाई थी खुद की स्थापना

कहा जाता है कि इस मंदिर में स्थापित कनक दुर्गा मां की प्रतिमा स्वयंभू है इस मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा है कि एक बार राक्षसों ने अपने बल प्रयोग द्वारा पृथ्वी पर तबाही मचाई थी तब अलग-अलग राक्षसों को मारने के लिए माता पार्वती ने अलग-अलग रूप धारण किए थे उन्होंने शुम्भ -निशुम्भ को मारने के लिए कौशिकी, महिषासुर वध को मारने के लिए महिषासुरमर्दिनि व दुर्गम सुर के लिए दुर्गा जैसे रूप धरे कनक दुर्गा ने अपने एक श्रद्धालु की 'किलाणु' को पर्वत बनकर स्थापित होने का आदेश दिया जिस पर वे निवास कर सके।

पहाड़ी की चोटी पर बसे इस मंदिर में श्रद्धालुओ का जयघोष से समूचा वातावरण और भी आध्यात्मिक हो जाता है इस मंदिर में पहुंचने के लिएसीढ़ी और सड़क दोनों ही है लेकिन ज्यादातर श्रद्धालु इस मंदिर में जाने के लिए सबसे मुश्किल माध्यम सीढ़ी का ही उपयोग करना पसंद करते हैं कुछ लोग यहां पर सीढ़ियों को सजाते हुए भी चढ़ाई चढ़ते हैं इसे मेतुला पूजा कहते हैं विजयवाड़ा स्थित इंद्रकीलाद्री नामक इस पर्वत पर निवास करने वाली माता का नाम दुर्गेश जी का मंदिर आंध्र प्रदेश के मुख्य मंदिरों में से एक है इस जगह पर एक बार आकर कोई भी इंसान इसे पूरी जिंदगी नहीं भुला सकता।
इस मंदिर में वैसे तो हर साल श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है लेकिन नवरात्रि के दिनों में इस मंदिर की छटा देखने लायक होती है कहा जाता है कि स्थान पर भगवान शिव की कठोर तपस्या के फलस्वरूप अर्जुन को पाशुपतास्त्र की प्राप्ति हुई थी और इस मंदिर को अर्जुन ने मां दुर्गा के सम्मान में बनवाया था महिषासुर का वध करते हुए इंद्रकीलाद्री पर्वत पर माँ 8 हाथों में अस्त्र था में और शेर पर सवार हुए स्थापित हुई।
पास की ही एक चट्टान पर ज्योतिर्लिंग के रूप में भगवान शिव भी वहाँ स्थापित हुए और ब्रह्मा जी ने यहां शिव कि मेलेलु के पुष्पों से आराधना की थी इसलिए यहां पर स्थापित शिव को एक नाम मल्लेश्वर स्वामी पड़ गया यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है यहां पर कम से कम सालाना 40 करोड से भी अधिक का चढ़ावा चढ़ाया जाता है।
सात शिवलीला और शक्ति महिमा में भी इस मंदिर का विशेष स्थान है कहते हैं कि यहां पर इंद्रदेव भी भ्रमण के लिए आते हैं इसलिए इस पर्वत का नाम इंद्रकीलाद्री पड़ गया यहां की एक और खास बात यह है कि सामान्यत देवता के बाएं स्थान पर देवियों को स्थापित करने का रिवाज है लेकिन यहां इस रिवाज को तोड़ते हुए यहां पर मलेश्वर देव की दाई दिशा में माता स्थापित है इससे पता चलता है कि इस पर्वत पर शक्ति की अधिक महत्व है।

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