टीवी स्क्रीन पर चल रहा नेताजी का लाइव जनसंपर्क

बिहारशरीफ। नेता जी सरकार में शामिल दल में थे। टिकट बंटवारे से पहले क्षेत्र में खूब मेहनत किए। सरकार के काम-काज का बखान करते थकते नहीं थक रहे थे। साथ ही अपना काम भी गिना जाते, जिसके वो वाजिब हकदार भी थे। वे दावा करते थे कि हमने व्यक्तिगत कोशिश के दम पर इतनी सड़कें, इतने पुल, इतने पक्की नहर, इतने छठ घाट और न जाने क्या-क्या बनवाए। पब्लिक बोलती थी, ये सब ठीक है। हम आपको वोट देंगे। पहले टिकट लेकर आइए। नेताजी को उम्मीद थी कि इस बार उन्हें उम्मीदवार बनाया जाएगा। पर नेतृत्व ने 'पुराने चावल' का 'पथ्य' दे डाला। नेता जी को समर्थकों ने सलाह दी कि चाहे जो भी हो, मैदान में आना है। फिर क्या था, समर्थकों की सलाह ने आग में घी का काम किया। नेतृत्व से नाराज नेता जी बागी हो गए। निर्दल नामांकन कर ताल ठोंक रहे हैं। नेता जी इंजीनियरिग किए हुए हैं। इनके चुनाव प्रचार में आईटी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है। चुनाव कार्यालय में एलईडी टीवी लगवा दिए हैं। समर्थक बैठे-बैठे लाइव जनसम्पर्क देखते रहते हैं। कोविड गाइड लाइन का पालन करने के लिए वे भीड़ से बचकर ही प्रचार कर रहे हैं। इधर, नेता जी के चुनाव मैदान में कूदने से नाराज पार्टी ने 6 साल के लिए उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

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'ऊपर वाले से बैर नहीं, नीचे वाले को खैर नहीं'
नेता और नारा का रिश्ता चोली- दामन का रहा है। नारा चाहे नेता जी के विरोध में लगे या समर्थन में, है तो नारा ही। होशियार नेता वही माने जाते हैं, जो विरोध के नारे से नहीं भड़कते और उसी क्षण अपनी वाकपटुता से मुर्दाबाद के नारे को जिदाबाद में परिणत करा लेते हैं। प्रचार अभियान के वर्चुअल से एक्चुअल मोड में आते के साथ इस चुनाव में भी नारे का महत्व बढ़ गया है। कभी-कभी नारा चुनाव जीतने या हारने का हथियार साबित होता रहा है। इस चुनाव में भी क्षेत्र विशेष में एक नारा तैर रहा है, 'ऊपर वाले से बैर नहीं, नीचे वाले को खैर नहीं।' ये नारे बागियों और उनके समर्थकों ने गढ़े हैं। दरअसल, पार्टी से बगावत इसलिए किए और कर रहे हैं कि उम्मीदवार का चेहरा बदले। अब ऐसा नहीं हुआ तो नारा गढ़ दिए। अब देखना रोचक होगा कि इस नारे के निहितार्थ नीचे वाले को कितना नुकसान पहुंचा पाते हैं। वैसे ये जो पब्लिक है, वह सब जानती है।
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चुनाव में दिख रहा सिनेमा का रोल : नालंदा जिले के सात विधानसभा क्षेत्र में एक विधानसभा क्षेत्र ऐसा भी है, जहां वोटरों की एक जमात पर सिनेमा का असर दिख रहा है। दरअसल, बीते दिनों एक ़िफल्म का विरोध देश भर में हुआ था। जिले में भी इसका जमकर विरोध हुआ। फिल्म मेकर ने फिल्म के नाम में की अंतिम मात्रा को बदल फिल्म रिलीज करवा ली थी। बावजूद इसका विरोध जारी था। बिहारशरीफ के एक सिनेमा हॉल में कड़ी सुरक्षा के बीच यह फिल्म दिखाई गई थी। विरोध करने सिनेमा हॉल पहुंचे लोगों पर पुलिस कार्रवाई कराई गई थी। जिस वर्ग को इस फिल्म की पटकथा से नाराजगी थी, वह नाराजगी आज भी कायम है। वे कह रहे हैं कि इस बार उस उम्मीदवार के विरोध में वोट करेंगे, जिसने विवादित सिनेमा दिखाया था।
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