कई विधानसभा क्षेत्रों में खेल बिगाड़ सकते हैंबागी

बिहारशरीफ। टिकट नहीं मिलने से नाराज कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बगावत का झंडा उठा रखा है। इन बागियों में कई बकायदा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में डटे हैं। इनमें से कई को बखूबी अहसास है कि वे चुनाव जीतना तो दूर, रेस में भी नहीं हैं। फिर भी दूसरे का खेल बिगाड़ने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं। ताकि, पार्टी नेतृत्व को अपनी भूल का अहसास हो सके। बागी चेहरों में कुछ निर्दल हैं तो कुछ पाला बदल कर दूसरे दल से टिकट लेकर चुनाव लड़ रहे हैं।

अस्थावां विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से जदयू ने लगातार चौथी बार विधायक जितेंद्र कुमार पर भरोसा जताया है। इसी सीट से जदयू के टिकट की आस लगाए अनिल कुमार महाराज ने पाला बदला और राजद के सिम्बल पर मैदान में हैं। वे इसके पहले भी वर्ष 2010 में स्वयं को अस्थावां क्षेत्र का बेटा बता जदयू से बगावत कर निर्दल चुनाव लड़े थे।

बिहारशरीफ में पूर्व विधायक फिलहाल कांग्रेस नेता नौशादुन नवी उर्फ पप्पू खान ने टिकट न मिलने से नाराज होकर पत्नी आफरीन सुल्तान को निर्दलीय खड़ा कर दिया है। पप्पू खान वर्ष 2019 के लोक सभा चुनाव से पहले राजद छोड़ कांग्रेस में शामिल हुए थे। लेकिन लोकसभा के लिए भी उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला। विधानसभा चुनाव में महागठबंधन में सीट राजद के खाते में चली गई।
राजगीर (सु.) विधानसभा क्षेत्र में जदयू विधायक रवि ज्योति कुमार को पार्टी ने इस बार मौका नहीं दिया तो उन्होंने इंत•ार करना मुनासिब नहीं समझा। बागी होकर एनडीए के जदयू उम्मीदवार कौशल किशोर के खिलाफ महागठबंधन के कांग्रेस से टिकट लेकर ताल ठोंक रहे हैं। 
इसलामपुर विधानसभा क्षेत्र में भी राजद नेता महेंद्र यादव टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर निर्दल चुनाव लड़ रहे हैं। इनका मकसद भी खेल बिगाड़ना ही है। इसी तरह हिलसा विधानसभा क्षेत्र में भी राजद में बगावत के सुर सुनाई दे रहे थे लेकिन विधायक शक्ति सिंह यादव को टिकट मिलने के बाद कोई चुनाव मैदान में नहीं उतरा।
नालंदा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में पिछली बार भाजपा के उम्मीदवार रहे कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया निर्दलीय मैदान में कूद पड़े हैं। वे जदयू के लिए फिर चुनौती बने हैं। पिछली बार वे नजदीकी लड़ाई में हारे थे।  
सबसे अधिक दिलचस्प स्थिति हरनौत विधान सभा क्षेत्र में बनी है। यहां जदयू के दो बागी मैदान में हैं। जदयू ने विधायक हरिनारायण सिंह पर फिर भरोसा किया है। टिकट नहीं काटा। इससे नाराज ममता देवी एवं इंजीनियर अशोक कुमार सिंह ने बगावत कर दी। लोजपा ने ममता देवी को टिकट दे दिया जबकि ई. अशोक निर्दल मैदान में हैं। ममता देवी जदयू के लिए चुनौती बनती जा रही हैं। हालांकि इन दोनों को जद यू ने छह साल के लिए निष्कासित कर दिया है। इधर, हरनौत से राजद खेमा के समर्थक रहे कौशलेंद्र कुमार उर्फ कौशल यादव एवं संजय सिंह भी चुनावी समर में हुंकार भर रहे हैं। कौशल बहुजन समाज पार्टी से तो संजय जाप (लो) से उम्मीदवार हैं। दोनों महागठबंधन के कांग्रेस पार्टी प्रत्याशी के आधार मतों में सेंध लगाने की जुगत में हैं।
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इनसेट
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कहीं स्वीकार तो कहीं इन्कार
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जिले में राजगीर और हरनौत, दो ऐसे विधान सभा चुनाव क्षेत्र है, जहां टिकट बंटवारे में जदयू के विरोधाभासी निर्णय की चर्चा हो रही है। हरनौत में अधिक उम्र होने की वजह से विधायक हरिनारायण सिंह को टिकट नहीं मिलने की चर्चा थी। स्वयं हरिनारायण सिंह ने भी चलने-फिरने में लाचारी का हवाला देकर चुनाव लड़ने से मना किया था। इसके पीछे श्री सिंह की इच्छा यह थी कि उनके पुत्र को उत्तराधिकारी के तौर पर पार्टी स्वीकार कर ले और उन्हें ही टिकट दे। लेकिन नेतृत्व ने शायद परिवारवाद की तोहमत से बचने के लिए ऐसा नहीं किया। 
लेकिन राजगीर (सु.)विधानसभा क्षेत्र में परिवारवाद की झलक दिख गई। यहां से आठ बार विधायक रहे और इन दिनों हरियाणा के राज्यपाल सत्यदेव नारायण आर्य के पुत्र को जदयू ने टिकट दे दिया। पिछली बार जदयू के रवि ज्योति कुमार ने ही भाजपा के सत्यदेव नारायण आर्य के लगातार चल रहे विजय रथ को रोका था। हर जगह चर्चा है, 'कहीं इनकार तो कहीं स्वीकार।'
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