आचार संहिता के उल्लंघन पर बिना दांत के कानून से वार

बक्सर : चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद से ही आचार संहिता के मामले मीडिया के सुर्खियों में रहते हैं, लेकिन बाद में यह केवल दिखाने के दांत साबित होता है। चुनाव के बाद इसके तहत होने वाली कार्रवाई को सजा के मुकाम तक पहुंचाने की सुध न तो प्रशासन को रहती है और न ही आयोग को। बक्सर के चारों विधानसभा क्षेत्रों में 28 अक्टूबर को मतदान संपन्न हो चुका है और अधिसूचना के बाद से बार भी आचार संहिता का खौफ सिर चढ़ कर बोला। इस बार कोविड गाइडलाइन के तहत आचार संहिता को लेकर सख्ती ज्यादा रही और 30 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए।


हालांकि, इसका अंजाम क्या होगा इसका पता इसी से लगाया जा सकता है कि इससे पहले के तीन तीन चुनावों में जिले में सौ से ज्यादा आचार संहिता के उल्लंघन के मामले दर्ज किये गये। एक भी ऐसा उदाहरण नहीं है, जिसमें इस कानून के तहत किसी को सजा मिली हो। विधि विशेषज्ञ वरीय लोक अभियोजक नंदगोपाल प्रसाद बताते हैं कि चुनाव अचार संहिता के तहत उन्हीं कानूनों में प्राथमिकी दर्ज की जाती है जो आम दिनों में भी प्रभावी रहते हैं। संपति विरुपण कानून को ही लें तो आम दिनों में उसके तहत कोई कार्रवाई शायद ही प्रशासन करता है। चुनाव दौरान यही कानून प्रत्याशियों की मनमानी पर अंकुश लगाने का सबसे बड़ा हथियार बन जाता है। हालांकि, वरीय लोक अभियोजक का कहना है कि अचार संहिता के तहत दर्ज मामले कम अथवा सांकेतिक सजा वाली प्रकृति के होते हैं और एक-दो तक की सजा या एक हजार रुपये तक का जुर्माना का प्रावधान है।
केरल में हुआ था पहला प्रयोग
आदर्श आचार संहिता का पहला प्रयोग केरल में वर्ष 1960 के चुनाव में हुआ, जब यहां की पुलिस ने चुनाव में सभी दलों को समान मौका देने की नीयत से कुछ गाइडलाइन जारी किये। बाद में अन्य राज्यों के चुनावों में भी इस प्रयोग को आजमाया गया। साल 1971 के आम चुनाव में पहली बार चुनाव आयोग ने सभी दलों से सहमति लेकर अपनी ओर से आदर्श आचार संहिता प्रस्तुत की। इसके बाद इसमें कई संशोधन किये गये।
आयोग को अधिकार लेकिन कानून से लाचार
चुनाव के दौरान आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने वाले प्रत्याशियों अथवा दलों के खिलाफ आयोग कड़ी कार्रवाई कर सकता है और उनकी उम्मीदवारी तक रद कर सकता है। परंतु, बाद में उन मामलों को सजा के मुकाम तक पहुंचाने में यह बेबस है। चुनाव से जुड़े एक वरीय प्रशासनिक अधिकारी ने बताया कि अधिसूचना जारी होने के साथ ही प्रशासन आयोग के अधीन हो जाता है और उसी के दिशा निर्देशों का पालन करने में अपने पूरे संसाधनों का इस्तेमाल करता है। अधिसूचना की अवधि समाप्त होने के बाद प्रशासन के पास रूटीन कार्यों का बोझ होता है और आचार संहिता के मामले को फालोअप करने का वक्त नहीं मिल पाता। आचार संहिता के सामान्य नियम
-कोई भी दल ऐसा कार्य न करे, जिससे जातीय, धार्मिक या भाषाई द्वेष फैले।
-धार्मिक स्थानों का उपयोग चुनाव प्रचार में निषेद्ध।
-मत पाने के लिए रिश्वत देना या मतदाताओं को डराना अपराध।
-बगैर अनुमति किसी का परिसर, दीवार अथवा संपति का उपयोग प्रतिबंधित।
-सभा व लाउस्पीकर आदि के इस्तेमाल की पूर्व अनुमति जरूरी।
-प्रचार नीतियों व कार्यक्रमों तक सीमित हो और कोई व्यक्तिगत आक्षेप न हो।
-इस बार कोविड गाइडलाइन के तहत फिजीकल डिस्टेंसिग और मास्क अनिवार्य के नियम लागू किए गए।
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