आज भी भारतीय समाज और साहित्य में प्रासंगिक हैं प्रेमचंद

आरा। साहित्यिक-सांस्कृतिक मंच, सुहियां की ओर से आदर्श विद्यालय, सुहियां में 'वर्तमान समय में प्रेमचंद के साहित्य की प्रासंगिकता' विषय पर एक विचार-गोष्ठी आयोजित की गई। आयोजन के संयोजक प्रसिद्ध रंगकर्मी और रंग-समीक्षक जितेंद्र सिंह थे। मंच संचालन करते हुए कवि-कथाकार सुमन कुमार सिंह ने कहा कि आज जो नीति-नियंता हैं, उन्हें जनता की समस्याओं से कोई मतलब नहीं है। लेकिन प्रेमंचद की विरासत है जो ऐसे नियंताओं से जूझने की प्रेरणा देती है।

कहानीकार डॉ. नीरज सिंह ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन सोद्देश्य लेखन था। धर्म, जाति, लिग, क्षेत्र आदि के आधार पर जो विभेद थे, प्रेमचंद ने उनका विरोध किया। उन्होंने समाज और मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए लिखा। 84 वर्ष पूर्व प्रेमचंद का निधन हुआ था, लेकिन वे आज भी भारतीय समाज और साहित्य में प्रासंगिक बने हुए हैं। कवि-आलोचक जितेंद्र कुमार ने कहा कि सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक ²ष्टि से आज भी उनकी रचनाएं जनता के यथार्थ को व्यक्त करने में सक्षम हैं और उनके संघर्ष को प्रेरणा प्रदान करती हैं। आलोचक रवींद्रनाथ राय ने कहा कि प्रेमचंद का राष्ट्रवाद देश की सीमाओं तक सीमित नहीं था, बल्कि किसान-मजदूरों-नौजवानों-स्त्रियों की जिदगी में सकारात्मक बदलाव और जनता की खुशहाली का पर्याय था। वह हिदू-मुसलमान-सिक्ख एकता पर आधारित राष्ट्रवाद था। कवि सुनील चौधरी ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं और उनके विचार सांप्रदायिकता, सामंतवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ संघर्ष में आज भी सहयोगी हैं। किसान-मजदूरों के प्रति ऐसी पक्षधरता बहुत कम लोगों में मिलती है।
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कवि-समीक्षक सुधीर सुमन ने कहा कि प्रेमंचद इसलिए प्रासंगिक हैं, क्योंकि जिन सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक सवालों से वे अपने समय में वैचारिक संघर्ष कर रहे थे, वे सवाल खत्म नहीं हुए हैं। आज जिस तरह सांप्रदायिक उन्माद, विवेकहीनता, असमानता, भेदभाव के विचारों को सत्ता प्रोत्साहित कर रही है, वैसे ही विचारों के खिलाफ प्रेमचंद ने अपने समय में तीव्र संघर्ष किया। अध्यक्षीय वक्तव्य में ललन पांडेय ने कहा कि उनके गांव में यह पहला साहित्यिक आयोजन हुआ है। उन्होंने कभी सोचा नहीं था कि यहां ऐसा कार्यक्रम हो सकता है। उन्होंने बालविवाह, वृद्ध विवाह और आधुनिक समय में संबंधों के नये रूपों को लेकर कुछ बहसें भी उठाईं। उदय प्रताप सिंह, पंकज यादव, विपिन बिहारी मालाकार, चतुर्भुज चौधरी, विदेश्वरी चौधरी आदि ने अपना विचार प्रकट किया। आयोजन के संयोजक प्रसिद्ध रंगकर्मी और रंग-समीक्षक जितेंद्र सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। आयोजन में जनमेजय यादव, सूर्यवंश पांडेय, विमलेश सिंह, रामकुमार चौधरी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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