लोहे की कड़ी से भूमि की पैमाइश प्रथा पर लगेगी ब्रेक

मोतिहारी। लोहे की कड़ी से चली आ रही भूमि की पैमाईश की प्रथा पर अब रोक लगेगी। ईटीएस व डीजीपीएस मशीन से नापी की जाएगी। बिहार विशेष सर्वेक्षण व बंदोबस्त अधिनियम 2011 की लागू किया गया है। लोहे की कड़ी की व्यवस्था अब इतिहास बन कर रह जाएगा।लगभग 4 सौ वर्षों से अधिक समय से चली आ रही इस तकनीक के बदले अब ईटीएस व डीजीपीएस मशीन ने ले ली है। इसके पहले भूमि की पैमाईश लोहे की कड़ी, लोहे की चेन, बांस- बल्ला व गज का उपयोग होता रहा है। इस नई तकनीक के तहत राज्य सरकार ने खर्चीली पद्धति से निजात पायी है। इसके तहत बिहार सर्वेक्षण व बंदोबस्त अधिनियम 2011 को लागू किया गया है। अकबर के समय से शुरू है यह प्रथा


लोहे की कड़ी से भूमि की पैमाईश की प्रथा मुगल बादशाह अकबर के समय से चली आ रही है। अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने इस प्रथा को वर्ष 1582 में लागू की थी। जिसके तहत भूमि की पैमाईश लोहे की कड़ी, लोहे की चेन, बांस- बल्ला, गज से की जाती रही है। इस प्रकिया को राजा टोडरमल बंदोबस्त के नाम से भी जाना जाता है। गज स्टैंडर्ड भूमि की पैमाईश का पैमाना था। भूमि की एक इकाई के लिए बीघा शब्द प्रयोग में आया।
पैमाईश की नई तकनीक भूमि पैमाईश की इस नयी तकनीक में ईटीएस व डीजीपीएस जैसे आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया जाता रहा है। इसमें हवाई जहाज से भूमि का नक्शा लिया जाता है। मुगल बादशाह अकबर के समय से जमीन के लिए बीघा, कटठा व गज का प्रयोग चला आ रहा है। इस नई विधि के अधीन जमीन का क्षेत्रफल वर्गमीटर व हेक्टेयर में दिया जाएगा। गलती की होगी कम संभावना
नई तकनीक से भूमि की पैमाईश में गलती होने की कम संभावना रहती है। इसमें पारदर्शिता रहती है। टोडरमल की भूमि पैमाईश में गलती होती रहती थी। ईटीएस व डीजीपीएस मशीन से गलती की कम संभावना रहेगी।
प्राथमिकता के आधार पर 20 जिलों जैसे बेगूसराय, सुपौल, शेखपुरा आदि में भूमि पैमाईश के तरीके ईटीएस व डीजीपीएस के इस नई तकनीक के तहत भू- सर्वेक्षण का कार्य शुरू है। निकट भविष्य में यहां भी इस नई तकनीक से भूमि पैमाईश की जाने लगेगी। इससे गलती होने की कम संभावना रहती है। -- विजय कुमार, अंचलाधिकारी,रक्सौल
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