जननेता के तौर पर स्थापित हुए पीएम मोदी और सीएम नीतीश

दरभंगा। चुनाव के वक्त जनतंत्र में जन मन को जीतना बड़ी चुनौती होती है। इस बार के विधानसभा चुनाव में लोक लुभावने वादे और नेताओं के इरादों को लोगों ने खूब पढ़ा और समझा। फिर जान समझकर फैसला लिया। मंगलवार को जब नतीजा सामने आया तो तमाम एक्जिट पोल नतीजों के सामने लुढ़कते नजर आए। एक बार फिर जन मन ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अपने विश्वास की मुहर लगा दी। इन दोनों नेताओं की जुगलबंदी ने मिथिलांचल के लोगों के दिलों में विकास के बूते जगह बनाई। चुनाव के दौरान उन्हीं बातों को रेखांकित किया, जो इन्होंने किया। राजनीति के जानकार बताते हैं कि किसी प्रदेश के समग्र विकास के लिए पावर की जरूरत होती है और वह पावर एनडीए ने दिया। सीएम नीतीश कुमार ने अपने पंद्रह साल के कार्यकाल में विकास की गाड़ी को पटरी पर खड़ा किया और इसके लिए आधारभूत संरचना तैयार की। मिथिला के लिए सबसे खास, दरभंगा में एरयपोर्ट, एम्स और सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की स्थापना। वहीं 1934 से दो भागों में बंटे मिथिलांचल को कोसी रेल महासेतु से जोड़ा जाना। इसके अलावा सूबे का विकास दर और इसे आगे ले जाने की बात। वर्तमान 15 साल बनाम पुराने 15 साल की याद। इन तमाम चीजों को केंद्र में रखकर तौला जाए तो इस बार वोटरों ने सधी राजनीति कर एक स्वच्छ वातावरण स्थापित करने की कोशिश की। इसी के साथ तमाम कोशिशों के बीच दरभंगा जिले की दस में से नौ पर एनडीए के प्रत्याशियों की जीत संग जननेता के तौर पर पीएम मोदी और सीएम नीतीश स्थापित हो गए।

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जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले राजद के कद्दावर नेता सिद्दीकी का हारना सबक
वर्तमान राजनीतिक परि²श्य में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकले दरभंगा ही नहीं सूबे के लिए राष्ट्रीय जनता दल के कद्दावर नेता अब्दुलबारी सिद्दीकी का चुनाव हारना एक सबक जैसा लगता है। सिद्दीकी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत जेपी आंदोलन से की। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। क्षेत्र बदलने और परीसीमन के बाद भी उन्हें हार का सामना बहुत कम करना पड़ा। दरभंगा जिले के बेनीपुर के बहेड़ा विस से तीन बार और अलीनगर से दो बार विधायक रहे। लेकिन, इस बार के चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग के अध्यक्ष जितेंद्र नारायण बताते हैं कि यह राजनीति में सबक जैसा है। सिद्दीकी का एक बड़ा कद है। लेकिन, जिन समीकरणों के तहत उन्हें केवटी से उतारा गया, उसे समझने में दल के नेतृत्व ने थोड़ी भूल की। यहां एमवाई समीकरणों पर उन्हें उतार तो दिया गया। लेकिन, एक बात यह भी है कि इस जमीन को भाजपा के सांसद रहे पद्मश्री हुकूमदेवनारायण यादव ने सींचा है। उनके पुत्र डॉ. अशोक कुमार यादव यहां के सांसद हैं। उपर से भारतीय जनता पार्टी ने जिस ब्राह्मण चेहरा डॉ. मुरारी मोहन झा को मैदान में उतारा वो एक जमीनी कार्यकर्ता रहे हैं। इस बार उन्होंने अपनी राजनीति बेहद संजीदगी से की और कांटे की टक्कर के बीच बाजी मार गए। इसके पीछे प्रत्याशी का निजी व्यक्तित्व तो था ही। साथ ही एनडीए सरकार के पंद्रह साल का काम भी इनके काम आया। सिद्दीकी का क्षेत्र बदलना बड़ी भूल के तौर पर देखा जा रहा है। -
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