छठ पूजा: खरना के साथ आज से शुरू हुआ 36 घंटे का निर्जला व्रत, गुड़ के खीर का लगता है भोग।

19 Nov, 2020 07:24 AM | Saroj Kumar 4065

आज दिन गुरुवार से खरना के व्रत के साथ निर्जला छठ व्रत का शुरुआत हो गया है। छठ महापर्व का पहला दिन नहाय खाय होता है एवं इस महापर्व का दूसरा दिन खरना का होता है जो आज है। हिंदी पंचांग के अनुसार यह कार्तिक महीने के पंचमी को मनाया जाता है। शाम को यानि गोधूलि बेला में खीर, रोटी और फलो का प्रसाद बना कर व्रत करने वाले सूर्य भगवान को अर्घ्य देते है। खरना का प्रसाद खाने के बाद छठ व्रतियों का 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास शुरू हो जायेगा। इसके बाद अगले दिन यानि 20 नवंबर शुक्रवार की शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। फिर इसके अगले दिन 21नवंबर की सुबह उदयीमान सूर्य भगवान को अर्घ्य देने के बाद इस महापर्व को करने वाले व्रती व्रत का पारण करेंगी और यह छठ महापर्व संपन्न हो जायेगा। लगातार 4 दिन तक चलने वाले इस महापर्व को बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। सम्पूर्ण बिहार राज्य के अलावा यह त्यौहार पूरे झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में बड़े ही धूम धाम के साथ मनाया जाता है। इस पर्व के महातम के देखते हुए आज पुरे हिंदुस्तान के साथ साथ विदेशो में बसे हिंदुस्तानी विदेशो में इस त्यौहार को मनाना शुरू कर दिया है।


खरना:  सूर्योदय सुबह 06 बजकर 47 मिनट पर होगा, वहीं सूर्यास्त शाम 05 बजकर 26 मिनट पर होगा।


क्या है खरना
खरना छठ व्रत का दूसरा दिन है, इससे पहले का दिन नहायखाय होता है और इस दिन व्रती अपने घर को गंगा जल से पवित्र करने के बाद कद्दू (लौकी) की सब्जी, अरवा चावल, चने की दाल और अगस्त के फूल का पकौड़ा बनाया जाता है।  


खरना के दिन पूरे दिन उपवास रख कर व्रत रखा जाता है और 36 घंटे के व्रत के दौरान न कुछ खाया जाता है और न ही जल पिया जाता है। शाम के समय छठ व्रती के घरों में गुड़,अरवा चावल व दूध से मिश्रित रसिया बनाए जाते हैं। रसिया को केले के पत्ते में मिट्टी के ढकनी में रखकर मां षष्ठी को भोग लगाया जाता है। 



आज पवित्र मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी से बनेगा खीर


छठ व्रत के दूसरे दिन यानी गुरुवार को खरना के दिन शाम में मिट्टी के चूल्हे परआम की लकड़ी से गन्ने की रस या गुड़ के साथ अरवा चावल मिला कर खीर बनाया जाएगा। खीर के साथ घी चुपड़ी रोटी और कटे हुए फलों का प्रसाद भगवान सूर्य को अर्पित किया जाएगा। दूध और गंगा जल से प्रसाद में अर्घ्य देने के बाद व्रतियां इसे ग्रहण करेंगी। खरना के बाद 21 नवंबर की सुबह अर्घ्य देने के बाद ही व्रत करने वाले जल और अन्न ग्रहण करेंगे।

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