KBC 12 Written Update : नेत्रहीन होने के बावजूद नहीं मानी हार, बने कई दिव्यांगों के मददगार

कौन बनेगा करोड़पति के सीजन 12 (KBC 12) के आज के कर्मवीर एपिसोड का हिस्सा हजारों दिव्यांग बच्चों की जिंदगी बदल चुके डॉ जीतेंद्र अग्रवाल बने. हॉटसीट पर डॉ जीतेंद्र अग्रवाल के साथ चैंपियन के रूप में उनका साथ दिया उनकी पत्नी डॉ. सुमन अग्रवाल ने. इन कर्मवीरों से पहले हेमलता के साथ केबीसी 12 के शुक्रवार के एपिसोड की शुरुआत हुई. वह गुरुवार के शो में एक लाइफ लाइन पहले ही खो चुकी थीं. आज उनके गेम की शुरुआत 5 हजार रुपये के साथ हुई.

सीनियर मैनेजर के तौर पर काम कर चुकीं हेमलता के घर में वह और उनकी बेटी ही हैं. वह अपने पद से रिटायर हो चुकी हैं. रिटायर होने के बाद हेमलता आपदा प्रबंधन टीम के साथ जुड़ीं और लोगों की मदद करने के काम में जुट गईं.
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इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई हेमलता
हेमलता से पचास लाख रुपये के लिए सवाल पूछा गया- ओलंपिक खेलों में कानूनी रूप से भाग लेने वाले पहले ब्लाइंड एथलीट कौन थे? जिसके ऑप्शन थे- 1. सोनिया वेट्टेनबर्ग, 2. नताली डू टोइट, 3. मारला ली रंयान, 4. पाओला फैंटैटो. हेमलता इस सवाल का जवाब नहीं दे पाई और उन्होंने क्विट कर दिया. हेमलता बहुत ही सुंदर खेलने के बाद शो से 25 लाख रुपये जीतकर गईं.
हेमलता के बाद हॉटसीट पर आज के एपिसोड के कर्मवीर डॉक्टर जीतेंद्र बैठे. जीतेंद्र, सार्थक नाम का एक एनजीओ चलाते हैं, जो कि न सिर्फ दिव्यांग बच्चों को मुफ्त शिक्षा और इलाज उपलब्ध कराता है बल्कि समाज में उन्हें उनकी जगह दिलाने में भी मदद करता है.
शो के प्रोमो वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुए थे. जिनमें जीतेंद्र के ही फाउंडेशन के बच्चे बताया कि किस तरह उन्हें डॉक्टर जीतेंद्र के एनजीओ ने मदद की, जिसके बाद वह आज आत्मसम्मान की जिंदगी जी रहे हैं.
2004 में डॉ. जीतेंद्र ने खोई आंखों की रोशनी
जीतेंद्र खुद भी नेत्रहीन हैं और अमिताभ बच्चन के एक सवाल का जवाब देते हुए जीतेंद्र ने बताया कि वह एक डेंटिस्ट हैं, लेकिन जब 2004 में वह क्लीनिक में अपने पेशेंट का इलाज कर रहे थे, तब अचानक उन्हें धुंधला दिखाई पड़ने लगा. उन्होंने कहा कि वह आंखों के डॉक्टर के पास गए, जिन्होंने उन्हें बताया कि उन्हें हैरिडो मैक्लोडिजेनरेशन है.
हैरिडो मैक्लोडिजेनरेशन एक ऐसी बीमारी है, जिसमें आंख का सेंट्रल विजन चला जाता है. जीतेंद्र ने बताया कि उन्होंने इसी तरह से जीना शुरू किया, जो कि शुरू में उनके लिए काफी परेशान करने वाला था. जीतेंद्र ने बताया कि 2004 से लेकर 2007 तक अपने खुद के स्ट्रगल से उन्हें यह सीख मिली कि दिव्यांगों के लिए बहुत सी संस्थाएं काम कर रही हैं, लेकिन जब तक उन्हें रोजगार नहीं मिलेगा वो आत्मनिर्भर नहीं हो सकेंगे.
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डॉक्टर जीतेंद्र ने बताया कि वह पहले सिर्फ नेत्रहीनों के लिए काम कर रहे थे, लेकिन फिर बाद में बहुत तेजी से लोग उनके साथ जुड़ते चले गए, जिसके बाद उन्होंने तय किया कि वह हर तरह के दिव्यांगों के लिए काम करेंगे. बता दें कि सार्थक की स्थापना साल 2008 में हुई थी और दिल्ली, चंडीगढ़, गुरुग्राम, लुधियाना, लखनऊ, जयपुर, हैदराबाद, मुंबई, पुणे, अंबाला, भोपाल, कोलकाता और गाजियाबाद जैसे तमाम शहरों में ये काम कर रही है.
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