प्रवासियों का दर्द : अफसरशाही से परेशान होकर फिर उठाया झोला और पकड़ी दिल्ली-मुंबई की राह

बेगूसराय, 28 नवम्बर, देश को कोरोना के कहर से बचाने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन होने के बाद परदेस में काम धंधा बंद हो गया तो बड़ी संख्या श्रमिक काफी जलालत झेलकर घर वापस आ गए थे। यहां शासन प्रशासन ने कई योजनाएं शुरू की। गांव में ही काम दिलाने के बड़े-बड़े वादे किए गए। लेकिन तमाम योजनाएं और वादे श्रमिकों को काम दिलाने में विफल साबित हुए।

दिल्ली- मुंबई में कोरोना संक्रमण का तीसरा दौर तेज हो जाने के बाद भी गांव में रोजी रोटी के लिए परेशान हो रहे श्रमिक प्रदेश की ओर चल पड़े हैं। दिल्ली और मुंबई के लिए चल रहे ट्रेन में सवार होने के लिए स्टेशन पर उमड़ने वाली झोला उठाए श्रमिकों की भीड़ सब भेद खोल रही है की उनके साथ कैसी नीति अपनाई जा रही है।
बेगूसराय रेलवे स्टेशन एवं बरौनी रेलवे स्टेशन के काउंटर पर पहले की तरह रिजर्वेशन कराने वालों की भीड़ लग रही है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, कोलकाता से आए बड़ी-बड़ी वोल्वो बस से भी श्रमिकों परदेस जा रहे हैं। शनिवार को भी बेगूसराय स्टेशन पर वैशाली सुपरफास्ट एक्सप्रेस में दो सौ से अधिक लोग दिल्ली जाने के लिए सवार हुए। सीट के आभाव में लोग शौचालय में बैठकर यात्रा कर रहे हैं। इनमें से कुछ फैक्टरी में काम करने वाले थे, कुछ रिक्शा-ठेला चालक थे तो कुछ दैनिक मजदूर भी थे।
सपरिवार दिल्ली जा रहे शिक्षित बेरोजगार विनोद कुमार, संतोष महतों एवं सुधीर कुमार आदि ने बताया कि यहां रोजगार नहीं मिलने के कारण हम लोग छह साल से दिल्ली के प्राइवेट फैक्टरी में नौकरी करते हैं। लॉकडाउन होने के बाद औद्योगिक, अवसंरचनात्मक विकास, व्यापार आदि से जुड़े गतिविधियों के ठप होने से पलायन की स्थिति बन गई और गांव आ गए थे। उस समय बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गई कि आत्मनिर्भर भारत योजना, गरीब कल्याण रोजगार योजना, औद्योगिक नवप्रवर्तन योजना आदि के जरिए सभी को गांव में ही काम और स्वरोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे।
देश के विभिन्न शहरों से वापस लौटे कामगारों के लिए रोजगार सृजन के साथ-साथ लक्षित समूह तक उसकी उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न प्रयास की बातें कही गई। लेकिन विभागीय अधिकारी और कर्मचारी की मनमानी के कारण सभी घोषणा हवा-हवाई साबित हो गया, सिर्फ दिखावा किया गया। तीन माह से लोन लेकर स्वरोजगार शुरू करने का प्रयास किया, लेकिन बगैर कमीशन लिए कोई सुनने को तैयार नहीं है। जिसके बाद अब थक हार कर फिर परदेस की राह पकड़ चुके हैं। यहां आठ महीने में परिवार की आर्थिक हालत काफी बदतर हो गई है। स्थायी कोई काम भी नहीं मिला, जिसके कारण मजबूरी में फिर दिल्ली जा रहे हैं, यहां रहकर करेंगे क्या।
सरकार ने हम लोगों के लिए बड़े पैमाने पर अभियान शुरू कराया, ताकि आपदा में हमें सहयोग मिले। लेकिन स्थानीय जनप्रतिनिधि और अधिकारियों के लिए यह आपदा भी कामधेनु गाय बन गई है। उन्होंने आरोप लगाया कि योजनाओं में जमकर लूट मचाई जा रही है तो मजबूरी में फिर परदेस का ही सहारा है। यहां रह कर आंखों के सामने परिवार को आर्थिक जलालत झेलना देखने से बेहतर है कि परदेस जाकर कोरोना से लड़ते हुए रोजी-रोटी की व्यवस्था की जाए। हम गरीबों को देखने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काफी प्रयास किया। लेकिन स्थानीय स्तर पर बेखौफ अफसरशाही तथा मचाए जा रहे लूट के कारण इसका समुचित लाभ नहीं मिल सका।

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