लोग पूछ रहे, जब शहर को बदहाल ही रखना था तो स्मार्ट सिटी के सपने क्यों दिखाए?

बिहारशरीफ। देश के सौ स्मार्ट शहरों में शुमार होने के बाद लगा बिहारशरीफ की तकदीर बदलेगी लेकिन चयन को चार साल से ज्यादा का वक्त बीतने को है, इस दौरान न शहर की तकदीर बदली और न ही तस्वीर। हालात आज भी वही है। बेहाल सड़कें, बजबजाती नालियां व कई मोहल्लों में पेयजल का अभाव। ऐसे में लोग पूछ रहे हैं कि जब शहर को बदहाल ही रखना था तो स्मॉर्ट सिटी के सपने दिखाने की क्या जरुरत थी।

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12 बार प्रमंडलीय आयुक्त की अध्यक्षता में हुई बैठकें रहीं बेनतीजा
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स्मार्ट सिटी से जुड़े कर्यो को गति देने को लेकर अब तक करीब 12 बार पटना में प्रमंडलीय आयुक्त की अध्यक्षता में बैठकें हो चुकी है। लेकिन इन बैठकों का कोई बड़ा अर्थ निकलकर सामने नहीं आया है। स्मार्ट सिटी के इस खेल में जनता कभी इंटरनेट से वोटिंग तो कभी जनसंवाद में उलझी रही। 2021 तक स्मार्ट सिटी बनकर तैयार होने का लक्ष्य रखा गया था लेकिन जिस गति से स्मार्ट सिटी निर्माण का कार्य चल रहा है ऐसे में स्मार्ट सिटी का निर्माण कार्य 2030 तक भी पूरा होना संभव नहीं लग रहा है। 11 माह पहले शहर की सभी प्रमुख सड़कों न वार्ड की गलियों में 575 सीसीटीवी कैमरे लगाने की घोषणा कमिश्नर ने की थी। इस कार्य का टेंडर होकर काम एजेंसी को मिल भी चुका परंतु अभी तक एक-दो वार्ड में ही काम शुरू हो सका है। ------------------------ स्मार्ट सिटी मद में एक साल पहले ही मिले थे सौ करोड़
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स्मार्ट सिटी बनने में सबसे बड़ा बाधक आवंटन की कमी कही जा रही है। परंतु एक साल पूर्व करीब 100 करोड़ की राशि केन्द्र से भेजी गई थी। वह रकम अब तक यूं ही पड़ी है। कारण इतनी छोटी राशि से स्मार्ट सिटी का कोई बड़ा काम संभव नहीं है। सच कहा जाए तो स्मार्ट सिटी में लगने वाला खर्च फुटबॉल की तरह लुढ़क रहा है। राज्य सरकार केंद्र पर ठीकरा फोड़ रही है तो केंद्र राज्य को आईना दिखा जाती है। फेंका-फेंकी के इस खेल में शहर दुर्गति के आंसू रो रहा है।
------------------------ पिछली बैठक में कंपनी को धीमी गति के लिए लगाई गई थी फटकार
दूसरी ओर स्मार्ट सिटी निगम काम की धीमी गति का ठीकरा कंपनी पर फोड़ रही है। मालूम हो स्मार्ट सिटी निर्माण का काम अमेरिका की स्कॉट विल्सन कंपनी को दी गई है। जो सड़क निर्माण और इंजीनियरिग वर्क के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। सारा निर्माण कार्य इसी के निरीक्षण में होना है। यह कंपनी छोटी-छोटी कंपनियों से काम करवाएगी। लेकिन, अब तक कंपनी का इंजीनियरिग वर्क से जुड़ा कोई बड़ा काम नहीं दिखा है। पिछले प्रमंडलीय बैठक में आयुक्त ने कंपनी के अधिकारियों को काफी डांट-फटकार लगाई थी लेकिन कोई सुधार नहीं हो सका।
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पहले 12 फिर 9 अब 3 तालाबों के जीर्णोद्धार की आ रही बात सामने : बिहारशरीफ के स्मार्ट सिटी के रूप में चयन के बाद बड़े-बड़े ख्वाब दिखाए गए। पहले शहर के 12 तालाबों के जीर्णोद्धार की बातें सामने आई। फिर 9 पर मुहर लगने की बात सामने आई। अब नए स्मार्ट सिटी सचिव व नगर आयुक्त अंशुल अग्रवाल तीन तालाबों का स्वरूप बदलने की बात कह रहे हैं। इनमें दो तालाब सुभाष पोखर तथा टिकुली पर का तालाब के जीर्णोद्धार की शुरूआत हुई। परंतु, चहारदिवारी के अलावा इन तालाबों के विकास का कोई काम होता नहीं दिख रहा है।
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ग्रीन लैंड के कारण खटाई में पड़े जन सुविधा केंद्र
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शुरुआती दौर में हर वार्ड में जन सुविधा केंद्र के निर्माण की बात की गई थी लेकिन यह काम खटाई में पड़ा है। इसके पीछे का कारण जन सुविधा केन्द्र के जिस जमीन की उपलब्धता पूर्व नगर आयुक्त ने करवाई थी, वे तमाम ग्रीन लैंड हैं, जिसपर काम संभव नहीं है।
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पुरानी रांची रोड को नया लुक देने पर चर्चा भी बंद : आश्चर्य की बात तो यह है कि स्मार्ट सिटी के चार सालों के सफर में एक भी काम अब तक पूरा नहीं हुआ है। जिस पुरानी रांची रोड को सबसे पहले नए लुक में बनना था, उस पर चर्चा तक बंद है। अलबत्ता दूसरे मद से बेतरतीब नाले का निर्माण करा दिया गया है। जिसे स्मार्ट सिटी के प्लान पर अमल के दौरान तोड़ दिया जाएगा। पूछने पर जवाबदेह पदाधिकारी ने कहा कि टेंडर हो चुका था तो काम कराना ही था। ऐसे में विभागीय रकम की बर्बादी होनी तय है। बहरहाल, कोई पदाधिकारी स्मार्ट सिटी निर्माण की धीमी गति के बारे में स्पष्ट बताने को तैयार नहीं।
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विकास के लिए संयम बेहद जरुरी
लंबी प्रक्रिया के कारण स्मार्ट सिटी के निर्माण की गति धीमी है। दो तालाबों का जीर्णोद्धार आरंभ है। वहीं, तीसरे श्रृंगारहाट पोखर के जीर्णोद्धार की दो दिनों में निविदा की जानी है। विकास के लिए संयम बेहद जरुरी है। बिहारशरीफ का चयन अंत में हुआ, बावजूद दूसरे सिटी से इसके विकास की गति तेज है।
अंशुल अग्रवाल, नगर आयुक्त, बिहारशरीफ

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