पटन की तीसरी आंख खराब, इसलिए भी बच जा रहे अपराधी, बनाने वाला कोई नहीं, ट्रैफिक लाइट सिस्टम के लगे हैं 150 कैमरे, चालू हैं सिर्फ 12

राजधानी पटना की तीसरी आंख खराब है। यही कारण है कि अपराधी वारदात को अंजाम देकर आराम से फरार हो जा रहे हैं। पुलिस जांच के नाम पर अंधेरे में तीर चलाती है। यानी अपराधियों को पकड़ने में सीसीटीवी कैमरे भी काम नहीं आ रहे हैं। पटना में लगे ज्यादातर सीसीटीवी कैमरे बंद हैं। ये कैमरे सड़क, नाली और गैस पाइपलाइन की भेंट चढ़ गए हैं। पिछले छह महीने से राजधानी के ज्यादातर सीसीटीवी कैमरे का फाइबर कटा हुआ है। 

पटना में अपराध नियंत्रण के लिए डायल 100 की ओर से 104 से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। इसके अलावा ट्रैफिक लाइट सिस्टम के तहत 150 सीसीटीवी कैमरे लगाये गये हैं। ट्रैफिक लाइट के मात्र 12 सीसीटीवी कैमरे ही काम कर रहे हैं। बाकी सीसीटीवी कैमरे की कनेक्टिविटी नहीं रहने के कारण ठीक रहने के बाद भी बेकार हैं। अब इनकी कनेक्टिविटी भी नहीं सुधर रही है, क्योंकि सीसीटीवी कैमरे लगाने वाली एजेंसी का टेंडर खत्म हो चुका है। 
यही हाल पुलिस विभाग के डायल 100 के लिए सीसीटीवी कैमरे का है। इसे लगाने वाली एजेंसी का भी टेंडर दो साल से खत्म है। यानी सीसीटीवी कैमरे किसी कारण से खराब हुए तो फिर बने ही नहीं हैं। बावजूद जिम्मेवार सिर्फ कागज पर शहर को स्मार्ट बनाने में लगे हैं। डाकबंगला और गांधी मैदान इलाके के कैमरे ही चालू हैं। शहर के अन्य हिस्सों के कैमरे चालू नहीं हैं। यही कारण है कि बाहरी इलाकों की ओर भागने वाले अपराधियों की पहचान नहीं हो पा रही है। इस संबंध में जब एसएसपी उपेंद्र शर्मा से बात की गई तो उन्होंने बताया कि डायल 100 के 150 कैमरे लगे हैं। हालांकि, इसमें कितने चालू हैं, इस बारे में उन्होंने कोई जानकारी नहीं दी। 
सिर्फ नंबर पढ़ पाता है एनपीआर डायल 100 की तरफ से जो कैमरे लगे हैं उसमें अधिकतर एनपीआर कैमरे हैं। ये कैमरे सिर्फ गाड़ी के नंबर ही पढ़ पाते हैं। उसमें भी यदि यह वायरलेस सिस्टम से नहीं जुड़ा है तो वह धुंधला दिखेगा। 
पीटीजेड है उपयोगी ट्रैफिक लाइट के ही पीटीजेड कैमरे हैं। ऐसे 12 कैमरे ही चालू हैं। यही कैमरे अपराधियों के चेहरे पढ़ पाते हैं। ये कैमरे घूमते रहते हैं। ऐसे में यह ज्यादा दूर तक की तस्वीर ले पाते हैं।

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