कोसी का पानी मछलियों के लिए नहीं अनुकूल

पूर्णिया [शैलेश]। कोसी इलाके की पहचान पान, माछ (मछली) और मखान से है। इलाके से होकर कई नदियां बहती हैं। यही वजह है कि मछली यहां का प्रमुख भोजन रहा है, लेकिन अब इस पर संकट मंडराने लगा है। पानी में आयरन की मात्रा बढ़ने से देसी मछलियों का अस्तित्व खतरे में है। पानी में आयरन की मात्रा बढ़ने से मछलियों के अंडों के निषेचन की दर घट गई है। इससे उनकी अपेक्षित वंशवृद्धि नहीं हो पा रही। वहीं, पानी में आयरन के कारण यहां हैचरी भी सफल नहीं हो पाते। क्षेत्र के मत्स्यपालक मछली पालन के लिए मछलियों के बच्चे बंगाल से लाते हैं। इस कारण अन्य प्रदेशों की तुलना में यहां का मछली व्यवसाय अधिक लाभदायक नहीं हो पाता है। यही कारण है कि जिले के लोग आंध्र की मछलियों पर निर्भर हैं। हालांकि विभाग पानी की शुद्धता पर विचार कर आयरन फिल्टर मशीन लगाकर शुद्ध पानी में अंडा पालन करने की योजना पर विचार कर रहा है। इस पर खर्च अधिक होगा। इसलिए इसकी शुरुआत नहीं हो पाई है। मत्स्यपालकों द्वारा कुछ हैचरी बनाया गए हैं, लेकिन योजना रफ्तार नहीं पकड़ रही है। मछली की कई प्रजातियों पर संकट::

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बड़ा जल क्षेत्र होने के कारण कोसी इलाके में मछलियों की कई प्रजातियां पाई जाती थीं। एक दशक पहले तक कबई, सिघी, मांगुरी, बचबा जैसी मछलियां नदियों के अलावा चौर और गहरे खेतों तक में मिल जाती थीं। अब यह कम ही दिखती हैं। कम मिलने के कारण ये महंगी भी हो गई हैं। जल प्रदूषण बढ़ने से मछलियां कई तरह की बीमारियों का शिकार भी हो रही हैं। ---------- 0.5 पीपीटी से कम होना चाहिए जल का पीएच::
जिला मत्स्य प्रसार पदाधिकारी डॉ अमन हसन कहते हैं कि हैचरी के लिए जल का पीएच मान 0.5 पीपीटी (पार्ट पर थॉजेंट) से कम होना चाहिए। यहां का पीएच मान 01 पीपीटी से अधिक है। पानी में आयरन की मात्रा अधिक होने के कारण मछली के अंडे की कोशिका परत कठोर हो जाती है। यह समय से नहीं फटने के कारण अंडा का निषेचन नहीं हो पाता है। बालू वाला मिट्टी होने के कारण सीमांचल और कोसी क्षेत्र के पानी में आयरण की मात्रा अधिक रहती है। किसान हैचरी बनाना चाहते हैं तो जल और मिट्टी की जांच के बाद उसे खोला जा सकता है। हैचरी के लिए मिट्टी भी बलुआही नहीं होनी चाहिए। हालांकि हैचरी में आयरन की मात्रा कंट्रोल करने के लिए सुक्रीना मेडिसिन डाला जाता है। वहीं खेती के लिए रसायनों और कीटनाशकों का अंधाधुंध प्रयोग से भी पानी प्रदूषित हो रहा है। इनके इस्तेमाल का असर पानी के पीएच पर पड़ता है और इससे जलीय जीव को नुकसान पहुंचता है। कोट के लिए:
कोसी इलाके के पानी में आयरन की मात्रा अधिक है। आयरन के कारण मछलियों के एग मेंमब्रेन फटते नहीं हैं जिससे अंडे निषेचित नहीं हो पाते हैं या होते है तो काफी कम संख्या में। पानी की जांच कर कम आयरन वाले पानी को उपयुक्त बनाकर हैचरी शुरू करने की तैयारी की जा रही है।
मनोरंजन कुमार, जिला मत्स्य पदाधिकारी, पूर्णिया
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