हाईटेक हो गई होली: रंग गुलाल से परहेज इंटरनेट हो रहा रंगीन

जागरण संवाददाता, सुपौल: बदलते जमाने के दौर में होली का स्वरूप भी बदलता जा रहा है। एक जमाना था कि वसंत के आगमन के साथ ही होली के परंपरागत व द्विअर्थी गीत गांवों की गलियों, चौपाल व सार्वजनिक स्थानों पर गूंजने लगते थे। सूरज ढ़लने के बाद होली की गीतों का जो सिलसिला शुरू होता था वह देर रात तक जारी रहता था। बीच-बीच में जोगीरा गाकर लोग झूमा करते थे। डंफ व झाल की ध्वनि दूर-दूर सुनाई देती थे, लेकिन अब होली भी हाईटेक हो गई है। अधिसंख्य लोग रंग व गुलाल से भी परहेज करने लगे हैं। एक समय था कि रंग और अबीर से तो लोग एक दूसरे को सराबोर करते ही थे। कीचड़, जले हुए मोबिल व गोबर के घोल से भी परहेज नहीं था। रिश्तों की मधुरता को होली और बढ़ा देती थी। शादी के बाद लोग पहली होली में ससुराल जाने से नहीं चूकते थे। महीनों पूर्व से ही लोगों को होली आने का इंतजार रहता था। होलिका दहन में पूरे गांव के लोग एक जगह जुटते थे। लेकिन, अब यह सब कुछ तेजी से बदल रहा है। नए साल पर तो रात के 12 बजे जैसे ही अंग्रेजी कैलेंडर करवट ले लेता है। मोबाइल पर एसएमएस और कॉल आने लगते हैं। फेसबुक, ट्विटर और वाट्सएप जैसे सभी माध्यमों पर बधाई संदेश का सिलसिला शुरू होता है। कोई भी पर्व, जन्म दिन या खुशी का मौका हो सबसे आगे इंटरनेट होता है। इन्हीं माध्यमों से बधाईयों का तांता लगता है। फिर होली में इंटरनेट कैसे पीछे रह सकता है। इंटरनेट तकनीक के मामले इतना रंगीन है कि घर, मोहल्ले ही नहीं विदेशों में बैठे अपनों से आप होली खेल सकते हैं। वह भी बिना कपड़े व चेहरे को गंदा किए हुए। अभी होली में कुछ दिन शेष है लेकिन, वाट्सएप, फेसबुक व एसएमएस इसका एहसास कराने लगा है। मैसेज भेजने वाले शुभेच्छुओं में होड़ लगी है। यहां तक मैसेज दिया जाता है कि कोई और आपको मैसेज करें उससे पहले पहला मैसेज मेरे ही द्वारा भेजा जा रहा है। वाट्सएप व फेसबुक के जरिए तो रंग-बिरंगे ग्रीटिग्स भी भेजे जा रहे हैं। होली पर डाक के जरिए ग्रीटिग्स भेजना या देना अब पुरानी बात हो गई। इंटरनेट ने इसे बेहद आसान बना दिया है।

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इंटरनेट ने डुबोई ग्रीटिग्स की लुटिया
बदलते जमाने के साथ बहुत कुछ बदल गया है। कभी लोग होली के अवसर पर भी दूर-दराज रहने वाले अपने लोगों को डाक के जरिए ग्रीटिग्स भेजा करते थे लेकिन अब डाक से ग्रीटिग्स भेजने की बात बीते दिनों की हो गई। अब इंटरनेट के जरिए ही रंगे बिरंगे ग्रीटिग्स भेजे जाते हैं। बाजार में अब होली का ग्रीटिग्स भी मुश्किल से मिलता है। इसके बदले लोग व्हाट्सएप व फेस बुक मैसेंजर का उपयोग करने लगे हैं।
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सूखी होली खेलिए, पर्यावरण को बचाइए
रंगों का त्योहार होली का अपना अलग आनंद है। होली में किसी को कोई कष्ट नहीं पहुंचे इसकी सोच रखना हर लोगों की जिम्मेवारी है। इतना ही नहीं होली से पर्यावरण का कोई नुकसान नहीं हो इसका भी ख्याल रखा जाना चाहिए। एक ओर जहां उत्साहित लोग जमकर होली मनाने की तैयारी में जुटे है। वहीं पर्यावरण विद इस पर्व में होने वाले पानी की बर्बादी और पेड़ की कटाई पर विराम लगाने की कवायद में जुटे हुए हैं।
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