आधुनिकता की चकाचौंध में गुम होने लगे होली के गीत

लखीसराय । पहले जिले के लोग विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की प्रतिमा विसर्जन के साथ ही होली के उमंग में मशगूल हो जाते थे। शाम होते ही विभिन्न मुहल्ले के लोग एक जगह एकत्रित होकर ढोलक की थाप एवं मंजीरे की झंकार पर होली के गीत एवं जोगीरा में मशगूल हो जाते थे। होली के दिन तक गांव-देहात से लेकर शहर तक के लोग विद्वेष भुलाकर शाम होते ही एक जगह एकत्रित होने के बाद गांव के हर दरवाजे पर जाकर होली के गीत एवं जोगीरा गाते थे। इस दौरान आपस में होने वाले ठिठोली एवं मजाक से सामाजिक विद्वेष मिट जाती थी। सरस्वती प्रतिमा विसर्जन से लेकर होली के दिन तक लोग होली के गीतों एवं जोगीरा में सराबोर रहते थे परंतु व्यस्तता की दौर एवं आधुनिकता की चकाचौंध में होली के गीत एवं जोगीरा गुम होकर रह गया है। ढोलक की थाप पर एवं मंजीरे की झंकार पर पर गांव-देहातों में होली के गीत नहीं सुनाई देते हैं। इसकी जगह अब द्विअर्थी भोजपुरी गीतों ने ले ली है। गांवों-देहातों में युवा वर्ग द्विअर्थी भोजपुरी गीत बजाकर उसपर थिरकते नजर आते हैं। होली के बहाने गांवों-देहातों में युवा वर्ग द्वारा द्विअर्थी भोजपुरी गीत के बजाने से लड़कियों एवं महिलाओं का घर से निकलना दूभर हो गया है। होली के बहाने लोग अश्लीलता की हदें पार करने लगे हैं। मस्त होकर ढोलक की थाप व झाल पर फगुआ गाकर झूमने की जगह लोग अब द्विअर्थी भोजपुरी गीत बजाकर हुड़दंग मचाने लगे हैं। अब न तो शहर की गलियों में शाम को जोगीरा गाने वाले की टीम दिखती है न ही ऐसे लोग बुजुर्ग का आशीर्वाद लेने घर-घर जाते थे। यही कारण है कि हर्षोल्लास का पर्व होली का दायरा सिमटता जा रहा है।

डॉग स्क्वॉयड की टीम ने शराब की खोज में की छापेमारी यह भी पढ़ें
-----
होली पर कहते हैं बुद्धिजीवी
होली भाईचारा, सामाजिक सौहार्द एवं उमंग का त्योहार है परंतु वर्तमान समय में कुछ लोग निजी स्वार्थ की खातिर होली के रंग को बदरंग कर रहा है। ऐसे लोग होली के दौरान हो-हंगामा एवं मारपीट करते हैं। यही कारण है कि लोग अब होली के गीत एवं जोगीरा गाने के लिए अपने घर से नहीं निकलते हैं। लोगों में अपने-आप तक ही सिमटकर रहने की प्रवृति बढ़ने लगी है। होली के रंग, राग, मस्ती एवं भाईचारा धीरे-धीरे समाप्त होने लगा है। उत्सव की महत्ता को प्राथमिकता देने की जरूरत है।
प्रो. अंजनी आनंद, साहित्यकार
----
आधुनिकता की इस दौर में परंपरा दम तोड़ रही है। पहले होली पर्व की तैयारी माह भर पहले शुरू हो जाती थी। रात में ढोल व फागगीत गाते थे, लेकिन अब ऐसा कुछ भी सुनाई नहीं दे रही है। जोगीरा के लिए हमलोग कई महीने से तैयारी करते थे। होली गीत वाले गाने बाजारों व चौक-चौराहो पर बजता था, लेकिन अब होली ने नाम पर हुड़दंग होने लगा है।
रामेश्वर कुंवर, वरिष्ठ नागरिक
----- होली उत्साह व उमंगों का पर्व है। होली हमारे संस्कारों को मजबूत करता है। दस वर्ष पूर्व तक शाम होते ही मुहल्ला के बुजुर्ग एवं युवक ढोल एवं झाल के साथ एक जगह जमा होकर होली के गीत एवं जोगीरा गाते थे। बुजुर्गों का आशीर्वाद लेते थे। दरवाजे से निकलने के समय होली गाने वाले लोग सदा आनंद रहे यही द्वारे, मोहन खेले होली रे गीत गाकर संबंधित परिवार को आनंदित रहने का शुभकामना देते थे। होली के दिन होली खेलने के बाद शाम को समाज के बुजुर्ग से आशीर्वाद लेने घर-घर जाते थे, लेकिन पहले वाली नहीं रही, अब तो होली के मायने ही बदल गए। कम हो गया है।
प्रजापति झा, अधिवक्ता
शॉर्ट मे जानें सभी बड़ी खबरें और पायें ई-पेपर,ऑडियो न्यूज़,और अन्य सर्विस, डाउनलोड जागरण ऐप

अन्य समाचार