आधुनिक युग में होली मनाने की परंपरा हुई विलुप्त

जमुई। आज के आधुनिक युग में गुजरे जमाने की होली मनाने की पुरानी परंपरा विलुप्त होते जारही है। दो दशक पूर्व फागुन प्रवेश करते ही लोग होली की तैयारी में जुट जाते थे। लोगों में त्योहार को लेकर काफी उत्साह रहता था, लेकिन आज के दौर में पूर्व की होली मनाने की परंपरा समाप्त हो चुकी है।

बुजुर्गों ने बताया कि आज से करीब दो दशक पूर्व फागुन माह प्रवेश करते ही होली की तैयारी शुरू हो जाती थी। लोगों में होली को लेकर काफी उत्साह दिखता था। पुरानी संस्कृति के अनुसार शाम ढलते ही होली गीत गाने वालों की टोली जुटती थी। देर रात तक गीत गाने का दौर चलता रहता था। देवी-देवताओं पर आधारित होली गीत गाए जाते थे। होली की गीतों से पूरा गांव गुंजायमान रहता था। इसमें बुजुर्ग, युवा व बच्चे एक साथ बैठते थे। यहां तक कि एक परिवार के लोग साथ में होली गीत गाते थे। इस दौरान महिलाएं भी गीत सुनने के लिए पहुंचती थीं। अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर परंपरागत गीत सुनाई पड़ती है। आज के दौर में होली की पुरानी परंपरा समाप्त होने की कगार पर है। बुजुर्गों ने बताया कि होलिका दहन के बाद हिन्दू रीति-रिवाज के अनुसार नए साल का आगाज होता था। गांव के एक स्थान पर होलिका दहन किया जाता था। इसके लिए करीब एक माह पूर्व से तैयारी की जाती थी। शाम ढलते ही ढोल बाजे के साथ युवाओं की टोली निकलती थी और घर घर होली गीत गाते थे। इसके साथ ही गोईठा, लकड़ी का संग्रह किया जाता था। होलिका दहन के दिन गांव के लोग जमा होते थे और देवी-देवताओं का सुमिरण कर होलिका दहन किया जाता था। सुबह होने के बाद लोग होलिका दहन स्थल पर पहुंचकर राख की टीक लगाते थे। इसके साथ ही होली खेलने का दौर शुरू होता था। आज एक ही गांव में कई जगह होलिका दहन किया जाता है।

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