जल संकट का बड़ा समाधान है वर्षा जल संचयन

सुपौल। वर्षा के जल को किसी खास माध्यम से संचय करने या इकट्ठा करने की प्रक्रिया को वर्षा जल संचयन अथवा वाटर हार्वेस्टिग कहते हैं। विश्वभर में पेयजल की कमी बड़ी समस्या बनकर कर उभर रही है। इसका मुख्य कारण जलस्तर का लगातार नीचे जाना ही माना जा रहा है। इस समस्या का एक समाधान जल संचयन भी है।

पशुओं के पीने के पानी की उपलब्धता, फसलों की सिचाई के विकल्प के रूप में जल संचयन प्रणाली को विश्वव्यापी तौर पर अपनाया जा रहा है। जल संचयन प्रणाली उन स्थानों के लिए उचित है जहां प्रतिवर्ष न्यूनतम 200 मिमी वर्षा होती है। पेय जल की समस्या के समाधान को ले जल संचयन के प्रति गंभीर होने की जरूरत है।
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वाटर हार्वेस्टिग को ले नगर परिषद गंभीर
नगर विकास एवं आवास विभाग बिहार सरकार के प्रधान सचिव ने सभी नगर निगम, परिषद एवं पंचायत को पत्र लिखकर वाटर हार्वेस्टिग के प्रति सचेत किया है। विभाग द्वारा जारी मार्गदर्शिका के अनुसार वैसे सभी सार्वजनिक स्थल यथा चापाकल, स्टैंड पोस्ट, प्याउ, वैसे सभी स्थान जहां पानी के उपयोग के बाद पानी की बर्बादी होती रहती है। इस प्रकार के स्थल के लिए शॉक पिट का निर्माण कर लगातार पानी गिरने के कारण बर्बाद हो रहे जल का संरक्षण किया जा सकता है।
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भवन निर्माण के नक्शे में है प्रावधान
भवन निर्माण के लिए नगर परिषद से जो स्वीकृति प्रदान की जाती है उसमें ही वाटर हार्वेस्टिग का प्राव धान दिया गया है। यानी जिस नक्शे में इसका प्रावधान नहीं डाला जाता है उसके निर्माण की स्वीकृति प्रदान नहीं की जाती है। विभाग द्वारा जारी निदेश के अनुसार खुली छत किसी कुंड या कूप से पीवीसी पाइप द्वारा फिल्टर करने वाली टंकी से जुड़ा होगा। उसमें बाल्ब प्रणाली लगाई जानी है ताकि संग्रहित वर्षा जल का पहला भाग यदि वह गंदा हो तो बाहर की ओर या मिट्टी में चला जाए। कुंड के निकट फिल्टर करने वाली टंकी बनाई जानी है। उस टंकी को छेददार स्लैब के द्वारा दो भागों में विभक्त किया जाना है। एक भाग को छोटे-छोटे कंकड़ों से भरा जाना है और दूसरे भाग में ईंट की जाली लगाई जानी है। टंकी का निचला भाग ढ़ालू होगा ताकि पानी जमा न हो जाए।
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