द्विराष्ट्र : हकीकत बनाम सिद्धांत, जावेद जब्बार का ब्लॉग

सन् 1940 में लाहौर प्रस्ताव को अपनाने की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में पाकिस्तान द्वारा 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस के रूप में मनाए जाने के तीन दिन बाद, बांग्लादेश 26 मार्च को अपने स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाता है. इन दो ऐतिहासिक तिथियों की निकटता - 23 और 26 मार्च - विपरीत संदर्भों को उजागर करती है.

दोनों देश कभी एक साथ मिलकर एक इकाई का प्रतिनिधित्व करते थे. बांग्लादेश की 2021 की वर्षगांठ तो और भी विशेष है क्योंकि इसी साल उस देश की स्वतंत्रता के 50 वर्ष पूरे हुए हैं. 1971 में 26 मार्च के ही दिन जनरल याह्या खान, जो उस समय पाकिस्तान सेना के अध्यक्ष और कमांडर-इन-चीफ थे, ने ऑपरेशन सर्चलाइट लॉन्च करके उस वर्ष की दूसरी भयावह भूल की थी.
ऑपरेशन का उद्देश्य अवामी लीग के अहिंसक लेकिन हिंसक हो चुके सविनय अवज्ञा आंदोलन को कुचलना था जो कि जनरल याह्या खान की पहली भयावह भूल के प्रतिक्रियास्वरूप एक मार्च को शुरू हुआ था. वह भूल थी नवनिर्वाचित नेशनल असेंबली के पहले सत्र को आखिरी समय में स्थगित करना, जो 3 मार्च को निर्धारित किया गया था.
उस पहली गलती में अंतिम क्षणों के स्थगन के बाद, सत्र के लिए नई तारीख तय नहीं पाने की विफलता भी जुड़ी थी. यह तारीख पांच दिन बाद आई, जिसमें सत्र के लिए 25 मार्च की तारीख निर्धारित की गई थी. लेकिन तब तक विश्वास पूरी तरह से टूट चुका था. 23 मार्च की तारीख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन लाहौर प्रस्ताव को औपचारिक रूप से बंगाल के एक अनुभवी नेता फजलुल हक द्वारा पेश किया गया था. जबकि 26 मार्च की तारीख इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन 14 अगस्त, 1947 को स्थापित होने वाले राष्ट्र-राज्य के विघटन की प्रक्रिया शुरू हुई थी.
पाकिस्तान के विघटन ने नौ महीने बाद 16 दिसंबर, 1971 को आकार लिया. यह केवल इसलिए हुआ क्योंकि भारत के सशस्त्र बलों ने 21 नवंबर 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की क्षेत्रीय संप्रभुता का गंभीर उल्लंघन किया. फिर भी, उस सर्जिकल पृथक्करण के बावजूद, दोनों भाग नाभिनालबद्ध हैं, जो पहले 24 वर्षों तक एक साथ थे. दोनों तारीखों के बीच की यह निकटता दोनों देशों की निकटता की भी प्रतीक है.
वे पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों की मुख्य रूप से मुस्लिम राष्ट्रीय पहचान को चिह्न्ति करने के लिए स्थायी चिह्न् बन गई हैं. हालांकि राष्ट्र के गठन की कई परिभाषाएं हैं, लेकिन दोनों देशों के गठन के इस आधार पर कोई दो मत नहीं है. नौ महीने के हिंसक संघर्ष से पहले भी, पूर्वी पाकिस्तान के बंगालियों ने उचित रूप से महसूस किया था कि वे पश्चिमी पाकिस्तानियों द्वारा भेदभाव के शिकार थे.
यद्यपि स्वतंत्रता के बाद पूर्वी पाकिस्तान में महत्वपूर्ण विकास हुआ, लेकिन लगभग 200 वर्षो की उपेक्षा - पहले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा और फिर ब्रिटिश सरकार द्वारा - की भरपाई के लिए केवल 24 वर्षो का विकास पर्याप्त नहीं था. 26 मार्च और 16 दिसंबर 1971 को, पूर्वी पाकिस्तान ने पाकिस्तान का हिस्सा बने रहने से इंकार कर दिया.
हालांकि, बांग्लादेश बनने के बावजूद, जो लोग कभी पूर्वी बंगाल का हिस्सा हुआ करते थे, उन्होंने द्विराष्ट्र की वास्तविकता में अपने विश्वास की पुन: पुष्टि की कि मुस्लिम और हिंदू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं. न तो 1971 में और न ही आज 2021 में बांग्लादेश खुद को हिंदू पश्चिम बंगाल के साथ फिर से जोड़ना चाहता है. न ही वह भारत में शामिल होना चाहता है.
बांग्लादेश के लोग मुस्लिम होने के बारे में गर्व महसूस करते हैं जो कि उनके संविधान के अनुच्छेद 2 ए में पूरी तरह से स्पष्ट है. अन्य धर्मो के लिए समान रूप से सम्मान को मान्यता देते हुए भी अनुच्छेद 2 ए इस श्रेणीबद्ध कथन से शुरू होता है: ''गणतंत्र का राज्य धर्म इस्लाम है..'' मुसलमानों के संबंध में थ्री डी महत्वपूर्ण है. इसमें से पहले डी, 'डिस्टिंक्टिवनेस' ऑफ मुस्लिम्स (मुसलमानों की विशिष्टता) की स्वीकार्यता के बाद चुनौती दूसरे डी का सामना करने की होगी, जो है इक्विटेबल 'डेवलपमेंट' अर्थात् न्यायसंगत विकास. इसके जरिये ही लैंगिक, आय, नस्ल आदि संबंधी असमानता को मिटाया जा सकेगा.
हो सकता है इसमें दशकों का समय लग जाए या कम भी लगे. लेकिन यह प्रयास करने योग्य है. तीसरा डी है 'डेस्टिनी' अर्थात् नियति जो दक्षिण एशिया के मुसलमानों की आकांक्षाओं को पूरा करती है. अगला चरण कई कारकों के अधीन होगा, जिसमें कुछ राज्य के नियंत्रण में होंगे और कुछ नहीं. 23 मार्च और 26 मार्च सम्मिलन या विचलन के प्रतीक हो सकते हैं लेकिन जिस चीज का वे प्रतिनिधित्व करते हैं वह उल्लेखनीय रूप से धैर्य है.

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