सहेज लो हर बूंद::::::: सतही जल के श्रोतों के प्रति बढ़ गई उदासीनता

जागरण संवाददाता, सुपौल: जल जीवन का आधार है। किसी क्षेत्र में जल एवं हरियाली की उपलब्धता अथवा अनुपलब्धता उस क्षेत्र में वर्षा की मात्रा, बाढ़ या सूखे की परिस्थिति का निर्धारण करती है। जल विशेषज्ञ भगवानजी पाठक ने कहा कि आज जिन क्षेत्रों में लोग सरकार द्वारा चलाई जा रही पेयजल एवं सिचाई योजनाओं का लाभ उठाकर आसानी से जल प्राप्त कर रहे हैं, बिजली का बटन दबाते ही पंप के माध्यम से जब चाहें तब प्राप्त करने की सुविधा मिलने से जल का दुरुपयोग करने में लोग जरा भी संकोच नहीं करते। जब जल मेहनत करके प्राप्त किया जाता था, जैसे कुएं से रस्सी खींचकर निकाला जाता था अथवा कहीं दूर से लाया जाता था तो लोग जल का महत्व समझते थे।


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पारंपरिक जलश्रोतों के प्रति बढ़ी है उदासीनता पंप का प्रचलन बढ़ने से भूमिगत जल के दोहन में व्यापक वृद्धि हुई है, जिससे लोग सतही जल के प्रमुख स्त्रोत नदी, तालाब, पोखर एवं कुएं के प्रति उदासीन हो गये। हमारी नदियां प्रदूषित होती गई, झील, जलाशय सूखते गये, पोखर-तालाबों को पाटा जाने लगा, एवं कुएं उपेक्षा के शिकार हो गए। परंपरागत जलविज्ञान को भूलकर वर्षा जल संरक्षण का कोई प्रयास नहीं किया गया। परिणामत: आज जल प्राप्त करने के श्रोतों पर संकट उत्पन्न हो गया।
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जल संचय से जलस्तर में होगी वृद्धि
वर्तमान जल संकट का एकमात्र समाधान वर्षा जल संरक्षण में है। अपने खेतों में वर्षा का जल रोककर, खेत तालाब बनाकर, पोखरों, कुओं में संरक्षित कर जहाँ एक ओर भूमिगत जल स्तर में वृद्धि होगी, बाढ़ की विभीषिका भी कम की जा सकती है, वहीं बादलों के बनने की प्रक्रिया होगी, जिससे पुन: वर्षा सूखे एवं अकाल से मुक्ति प्रदान करने में सहायक होगी। वर्तमान में वर्षा जल को संरक्षित करना इसलिए भी आवश्यक है, क्योंकि हमारे लिए उपलब्ध पेयजल के अन्य दोनों स्त्रोत सतही जल एवं भूमिगत जल अत्यंत संकटपूर्ण अवस्था में पहुंच गए हैं।
बेतहाशा भूमिगत जल दोहन से जल का स्तर नीचे चला गया, जिससे वातावरण की ऑक्सीजन को भूमिगत खनिज लवणों से प्रतिक्रिया करने का अवसर मिला। दुष्परिणाम आज हमें बहुत से स्थानों पर बोरवेल से निकलने वाले जल में विभिन्न रसायनों की अधिकता एवं उनका स्वास्थ्य विपरीत प्रभाव के रूप में परिलक्षित है।
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