वर्षा जल संचय के लिए पोखर और कुएं का जीर्णोद्धार जरूरी

सहरसा। सरकार जल सरंक्षण और पर्यावरण की शुद्धता को लेकर जल, जीवन और हरियाली योजना के तहत पौधारोपण समेत कई अन्य योजनाएं चलाई जा रही है। इन योजनाओं पर काफी राशि खर्च हो रहा है, परंतु वर्षा जल का संचय नहीं हो पा रहा है। कुंआ और तालाब के जीर्णोद्धार को लेकर खास पहल नहीं हो पा रही है।

जानकारी के अनुसार, प्रखंड क्षेत्र में 72 सरकारी पोखर हैं जिनमें से कई का अस्तित्व समाप्त हो गया है। सिर्फ कागजों पर ही तालाब है। ऐसे पोखरों की जमीन पर पक्के मकान बन चुके हैं या फसलें लहलहा रही है। कोसी के बाढ़ और जलजमाव वाले इलाकों में जहां रेन हार्वेस्टिग लगाने में कठिनाई महसूस की जा रही है वहां जल सरंक्षण के इन पारंपरिक तरीकों को लोग अमल नहीं कर पा रहे हैं। जल, जीवन हरियाली योजना के तहत ऐसे पुराने पोखरों का जीर्णोद्धार कर उसे नया स्वरूप दिया जाना है। सरकारी निर्देश के आलोक में अंचल प्रशासन द्वारा सर्वे भी करवाया गया, लेकिन दो वर्षों में महज दो पोखरों का जीर्णोद्धार लघु सिचाई विभाग द्वारा करवाया जा सका है।

कोशी सेवा सदन के सचिव राजेन्द्र झा ने बताया कि कोशी क्षेत्र में जल सरंक्षण के लिए पोखर, कुंआ, आगर, चर को नवजीवन देना होगा। उनकी संस्था द्वारा भी ऐसे कार्य करवाए जा रहे हैं, लेकिन अगर इसमें प्रशासन का सहयोग मिले तो कार्य बेहतर ढंग से वृहत पैमाने पर किया जा सकता है।
वहीं मेघ पाईन अभियान के प्रदेश समन्वयक प्रदीप पोद्दार का कहना है कि विकास के इस दौर में खेतों में अधिक उपज के लोभ में किसान द्वारा रसायनिक खाद और कीटनाशक का धड़ल्ले से कर रहे हैं जिसके कारण भूजल भी प्रभावित होने लगा है। ऐसे समय में वर्षा जल का सरंक्षण कर पेय जल के रूप में इस्तेमाल करने से आम लोगों को जलजनित बीमारियों से बचाया जा सकता है। नेहरू युवा क्लब के बाल मुकुंद सिंह का कहना है कि कैच फॉर रेन योजना को लेकर उनकी संस्था द्वारा जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है जिसमें लोगों को वर्षा जल संग्रह और उसके पेयजल के रूप में इस्तेमाल के लिए प्राचीन परंपरा कुंआ खुदवाने और पुराने कुंआ के जीर्णोद्धार के लिए प्रेरित किया जाता है। साथ ही अधिक से अधिक पौधारोपण का संदेश दिया जाता है।
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