भरत कुमार झा, सुपौल: प्राकृतिक नियमों व स्वभाव की मर्यादा को कोसी के जनमानस ने आदि काल से सहर्ष स्वीकारा है। वर्तमान में कोसी का प्रकृति आधारित जीवन चक्र कई चुनौतियों के बीच खड़ा है। कोसी में जल की प्रचूरता के बावजूद पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। पानी में आयरन प्रचूर मात्रा में पाई जा रही है। सरकारी योजनाएं सरजमीन पर इससे निजात दिलाने में उतनी कारगर साबित नहीं हो पा रही है। ऐसे में जल संरक्षण के प्रति चंद्रशेखर का ग्राम्यशील प्रयत्नशील है। जिस तरह वर्तमान में जल नीतियां, योजनाएं, और उसे पूरा करने के लिए जिस वैज्ञानिक तकनीक और वित्तीय संसाधन का उपयोग किया जा रहा है। उससे हमारी संपूर्ण जल संस्कृति नष्ट होने की कगार पर है। इस पूरे परिप्रेक्ष्य को वैज्ञानिक तरीके से समझने, जल ज्ञान और जलस्त्रोतों की उपयोगिता का विश्लेषण करने तथा परंपरागत जलस्त्रोतों के संरक्षण और संवर्द्धन का कार्य कोशी क्षेत्र में ग्राम्यशील ने 2005 से आरंभ किया।
ग्राम्यशील ने बाढ़ मुक्ति अभियान और मेघ पाईन अभियान के विशेषज्ञों के परामर्श और सहयोग से कोशी इलाके के सुपौल जिला के तटबंध के भीतर और बाहर के सभी जलस्त्रोतों का अध्ययन किया।
बाढ़ के दौरान सुरक्षित स्थानों पर रह रहे लोगों को शुद्ध पेय जल के अभाव की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर चापाकल या तो पानी में डूब जाते हैं या गाद जमा हो जाने के कारण खराब हो जाते हैं। चारों तरफ पानी से घिरे तटबंध एवं अन्य ऊंचे स्थान पर फंसे लोगों के बीच यह एक आम धारणा है कि चापाकल का शुद्ध दिखने वाला पानी उनके पेयजल के लिए उपयुक्त है, लेकिन वास्तव में शुद्ध दिखने वाला चापाकल का वह जल पूर्णतया बाढ़ का दूषित पानी ही तो है। बाढ़ प्रभावित लोगों को शुद्ध पेयजल प्राप्त करने हेतु इन्होंने अपनी संस्था ग्राम्यशील के माध्यम से मेघ पाईन अभियान के साथ मिलकर वर्षा जल संग्रहण का सस्ता और आसान विकल्प लोगों के सामने प्रस्तुत किया। पालीथीन शीट से बने अस्थाई घरों से वर्षा जल का पानी प्राप्त करने, उसके रख रखाव, सावधानियां, उपयोग के बारे में संस्था ने लोगों को जागरूक कर प्रशिक्षित किया। 2006 से 2010 तक करीब 10,000 से ज्यादा लोगों ने इस तकनीक का उपयोग कर वर्षा जल का शुद्ध पेयजल में उपयोग किया। फिर लोगों ने चार बांस के डंडे गाड़कर एक दो मीटर के प्लास्टिक सीट में वर्षा जल संग्रहण का तरकीब ढूंढ निकाला। इसके विस्तार होते-होते कोशी क्षेत्र में संस्था द्वारा बांस से बने प्रथम जल कोठी का निर्माण किया गया। बाद में मिट्टी पात्र बनाकर वर्षा जल संचय प्रक्रिया को आसान बनाया गया। उत्तर बिहार का पहला स्थाई 13,000 लीटर का वर्षा जल टैंक स्थानीय इंजीनियर और प्रसिद्ध जल विशेषज्ञ डा. दिनेश कुमार मिश्र, एकलव्य प्रसाद आदि के देख रेख में संस्था परिसर में निर्मित किया। इस प्रकार स्थानीय ज्ञान, तकनीक, क्षमता और संसाधन का समुचित उपयोग करते हुए आधुनिकतम शुद्ध पेयजल प्राप्त करने का सस्ता और आसान तरीका ग्राम्यशील ने प्रस्तुत किया।
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मटका फिल्टर का सिखाया उपयोग
यहां की सामान्य समस्याएं जल में आयरन की अधिकता है। ग्राम्यशील ने इस समस्या से निजात पाने हेतु परंपरागत ज्ञान और संसाधन से आयरन शुद्धिकरण का उपाय मिट्टी का मटका फिल्टर विकसित कर एक मिसाल पेश किया। ग्राम्यशील का दावा है कि मिट्टी के बने तीन मॉडल में आयरन के साथ आर्सेनिक तक का शुद्धिकरण किया जा सकता है। ग्राम्यशील ने पूर्वी कोशी तटबंध के भीतर और बाहर 21 पुराने कुओं का भी जीर्णोद्धार किया है।
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