Google ही नहीं बल्कि दुनिया के 75 फीसदी देशों से ज्‍यादा बिजली खर्च करता है बिटकॉइन, आखिर क्‍यों इतनी एनर्जी चाहिए?

पिछले सप्‍ताह ही टेस्‍ला के संस्‍थापक व सीईओ और क्रिप्‍टोकरेंसी के समर्थकों में से एक इलॉन मस्‍क ने एक ट्वीट किया था. मस्‍क के इस ट्वीट के महज 2 घंटे के अंदर बिटकॉइन के भाव में रिकॉर्ड गिरावट आई. दरअसल, इलॉन मस्‍क ने घोषणा किया कि अब उनकी कंपनी अपनी वाहन बेचने के लिए पेमेंट के तौर पर बिटकॉइन नहीं स्‍वीकार करेगी. इस फैसले के पीछे की वजह बताते हुए उन्‍होंने कहा कि बिटकॉइन में जीवाश्‍म ईंधन खर्च हो रहा है जोकि पर्यावरकण के लिए नुकसानदेह है. मस्‍क की इस ट्वीट से बिटकॉइन में जो गिरावट आई, वो आने वाले समय में बढ़ भी जाए.

लेकिन बिटकॉइन माइनिंग पर कार्बन उत्‍सर्जन का सवाल अब भी बना हुआ है. आखिर क्‍यों इसकी माइनिंग में इतनी एनर्जी खर्च होती है? पर्यावरण के लिए यह कितना खतरनाक है? शायद आप जानकर चौंक जाएंगे कि बिटकॉइन माइनिंग में हर घंटे जितनी बिजली की खपत होती है, दुनिया के 75 फीसदी देश अपने यहां प्रति घंटे इतनी बिजली नहीं खर्च करते हैं.
बिटकॉइन माइनिंग पर हर साल स्विटजरलैंड जितनी एनर्जी खर्च
कैम्ब्रिज बिटकॉइन इलेक्ट्रिसिटी कंजम्‍पशन इंडेक्‍स (CBECI) ने बिटकॉइन माइनिंग पर खर्च होने वाली एनर्जी पर एक डेटा जारी किया है. मस्‍क ने इस डेटा से जुड़े चार्ट को शेयर करते हुए कहा, ‘बीते कुछ महीने में एनर्जी का इतना इस्‍तेमाल होना पागलपन जैसा है.’ बिटकॉइन पाने का प्रोसेस एक तरह का गहन प्रयास है. डच बैंक के एनलिस्‍ट्स का मानना है, ‘अगर बिटकॉइन देश होता तो हर साल यह उतनी ही एनर्जी खर्च करता, जितनी स्विजरलैंड जैसे देश इस्तेमाल करते हैं.’
एनर्जी खर्च करने के मामले में कितने नंबर पर है बिटकॉइन
CBECI ने जो डेटा जारी किया है, उससे बिल्‍कुल स्‍पष्‍ट है कि कैसे बीते कुछ समय में बिटकॉइन के बढ़ते भाव के साथ इसपर बिजली की खपत भी बढ़ी है. 2016 से 2020 के दौरान इसमें रिकॉर्ड तेजी देखने को मिली है. बिटकॉइन माइनिंग पर खर्च होने वाली एनर्जी का अधिकतम स्‍तर 149 टेरावॉट-घंटे है. वर्तमान में यह 135 टेरावॉट-घंटे है.
इस लिहाज से भी यह सबसे ज्‍यादा एनर्जी इस्‍तेमाल करने के मामले में बस 26 देशों के पीछे है. दुनियाभर में सबसे ज्‍यादा बिजली की खपत चीन में होती है. इस मामले में दूसरे स्‍थान पर अमेरिका और तीसेर पर भारत है.
500 टेरावॉट-घंटे तक एनर्जी इस्‍तेमाल कर सकता है बिटकॉइन
गूगल जैसी बड़ी टेक कंपनी 12.2 टेरावॉट-घंटे एनर्जी का इस्‍तेमाल करती है. इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) के एक एनलिस्‍ट जॉर्ज कामिया का कहना है कि बिटकॉइन माइनिंग को हटा दें तो दुनियाभर के डेंटा सेंटर्स में कुल 200 टेरावॉट-घंटे बिजली की खपत होती है.
IEA का अनुमान है कि यह स्थिति और खराब होने वाली है. अगर माइनर्स आने वाले समय में और भी एनर्जी खपत करने वाले इक्विपमेंट्स का इस्‍तेमाल करते हैं तो यह 500 टेरावॉट-घंटे के स्‍तर तक पहुंच सकता है.
क्‍या है बिटकॉइन माइनिंग?
दरअसल, बिटकॉइन में बेहतर रिटर्न मिलने की वजह से ही इसकी माइनिंग बढ़ती जा रही है. यही कारण है कि इसी साल के शुरुआत में बिटकॉइन का कुल मार्केट कैप 1 लाख करोड़ डॉलर के पार पहुंच चुका है. बता दें कि क्रिप्‍टोकरेंसी कमाने के लिए पार्टिस‍िपेंट्स नेटवर्क पर काम करते हैं. इन्‍हें एक ‘माइनर्स’ कहते हैं. ये ही ब्रुट फोर्स प्रोसेसिंग पावर के जरिए बेहद जटिल इक्‍वेशन का हल निकालते हैं.
यह बिटकॉइन माइनिंग के लिए एक तरह ‘प्रूफ ऑफ वर्क’ प्रोटोकॉल होता है. इसके बिना कोई भी माइनर बिटकॉइन नहीं प्राप्‍त कर सकता है. यही इसकी सबसे बुनियादी शर्त होती है.
क्‍यों होती है इतनी बिजली खपत?
इस सिस्‍टम को कुछ इस तरह से तैयार किया गया है कि हर 10 मिनट में यह नेटवर्क उन लोगों को कुछ बिटकॉइन अवॉर्ड करता है जो सफलतापूर्वक दी गई पहेली को सॉल्‍व कर देते हैं. बिटकॉइन की कीमतें बढ़ने के साथ ही इसकी मांग भी बढ़ती जा रही है. परिणामस्‍वरूप इसकी माइनिंग पर बिजली खपत भी तेजी से बढ़ रही है.
बिटकॉइन के लिए रिन्‍युवेबल एनर्जी दूर की कौड़ी
पिछले महीने ही एक साइंटिफिक जर्नल में दावा किया गया कि चीन में बिटकॉइन माइनिंग से होने वाला उत्‍सर्जन उसके क्‍लाइमेट गोल के लक्ष्‍य पर भारी पड़ सकता है. चीन में दुनिया की 80 फीसदी क्रिप्‍टोरकरेंसी ट्रेड होता है. चीन में माइनिंग के लिए अधिकतर कोयले और लिग्‍नाइट पर ही निर्भर रहना होता है. ब्‍लूमबर्ग ने अपने एक अनुमान में कहा है कि साल 2060 तक चीन अपने यहां क्रिप्‍टोकरेंसी ट्रेडिंग के लिए र‍िन्‍युवेबल एनर्जी का इस्‍तेमाल कर पाएगा.
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