मेडलाइन प्लस (MedlinePlus) के अनुसार एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) हार्ट डिजीज का वो प्रकार है, जिसके लक्षण युवावस्था में नजर आते हैं। यह मायोकार्डियम से जुड़ा एक डिसऑर्डर है। मायोकार्डियम हार्ट की मस्कुलर वॉल (Muscular wall) को कहा जाता है। यानी, यह स्थिति समय के साथ मायोकार्डियम का हिस्सा टूटने का पैदा होती है, जिससे असामान्य एब्नार्मल हार्टबीट (एरिथमिया) और अचानक मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है। एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के शुरुआती स्टेजिस में हो सकता है कि रोगी में इसका कोई भी लक्षण नजर न आए लेकिन इससे प्रभावित व्यक्ति को अचानक मृत्यु का भय भी रहता है, खासतौर पर अधिक व्यायाम या शारीरिक परिश्रम के दौरान।
अगर बाद के स्टेजिस में मायोकार्डियम को अधिक नुकसान होता है, तो इसके कारण हार्ट फेलियर (Heart Failure) की संभावना बढ़ सकती है। आइए जानते हैं इस समस्या के बारे में और अधिक। शुरुआत करते हैं इसके लक्षणों से।
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया के लक्षण क्या हैं? (Symptoms of Arrhythmogenic right ventricular cardiomyopathy)
समय रहते इस हार्ट डिजीज के लक्षणों को पहचानना बेहद जरूरी है, क्योंकि ऐसा न होने पर यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है। इसके कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं:
अगर इस समस्या का कुछ ही मिनटों में उपचार न किया जाए तो मृत्यु भी हो सकती है। यह तो थे इसके कुछ लक्षण। अब जानिए क्या हैं इसके कारण?
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एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया के कारण (Causes of Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy)
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के कारणों के बारे में जानकारी नहीं है। यह एक दुर्लभ हार्ट डिजीज है। हालांकि, यह समस्या बिना फैमिली हिस्ट्री के कारण भी हो सकती है। लेकिन, ऐसा माना जाता है कि एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया के लगभग तीस से पचास प्रतिशत मामलों में फैमिली हिस्ट्री को इसका कारण माना गया है। हालांकि, सभी खास जीन्स को इसका कारण नहीं माना गया है। शोधकर्ता स्पेसिफिक जीन म्युटेशन (Specific Gene Mutation) और एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) से जुड़े क्रोमोसोम्स (Chromosomes) के स्थानों की पहचान करने का प्रयास कर रहे हैं।
इसके अलावा इस हार्ट डिजीज को कई नॉन-जेनेटिक कारणों से भी जोड़ा गया है जैसे कंजेनिटल अब्नोर्मलिटीज (Congenital abnormalities), वायरल या इंफ्लेमेटरी मायोकार्डिटिस (Viral or inflammatory myocarditis) आदि। अब जानिए इस समस्या के निदान के बारे में।
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एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया का निदान (Diagnosis of Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy)
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic right ventricular cardiomyopathy) का निदान इसकी मेडिकल हिस्ट्री, शारीरिक जांच और टेस्ट्स पर निर्भर करता है। इसके निदान के लिए डॉक्टर सबसे पहले रोगी से लक्षणों के बारे में जानते हैं। उसके बाद रोगी की मेडिकल और फैमिली हिस्ट्री जानी जाती है। इसके साथ शारीरिक जांच भी की जाती है। डॉक्टर इस समस्या के निदान के लिए रोगी को यह टेस्ट करने के लिए भी कह सकते हैं, जैसे:
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अगर रोगी में निम्नलिखित समस्याएं हैं, तो एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) की पुष्टि की जा सकती है:
इसके निदान के बाद डॉक्टर उपचार के तरीकों के बारे में निर्धारित करते हैं। जानिए है कि कैसे हो सकता है इस हार्ट डिजीज का उपचार?
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एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया का उपचार (Treatment of Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy)
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के उपचार के विकल्प हर रोगी के लिए अलग हो सकते हैं। यह तरीके रोगी के कार्डिएक टेस्ट रिजल्ट्स, मेडिकल हिस्ट्री और जेनेटिक म्युटेशन की अनुपस्थिति पर निर्भर करते हैं। इसके सबसे सामान्य उपचारों में दवाईयां, इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर्स (Implantable Cardioverter Defibrillators) और कैथेटर एबलेशन (Catheter Ablation) शामिल है:
दवाईयां (Medication)
इन दवाईयों को एरिथमिया के एपिसोड्स और गंभीरता को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह दवाईयां हार्ट की इलेक्ट्रिकल प्रॉपर्टीज को एक या दो तरीकों से प्रभावित कर सकती हैं, जैसे:
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इसके अलावा प्रयोग होने वाली दवाईयां इस प्रकार हैं:
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इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर (Implantable Cardioverter Defibrillators)
इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर-डिफाइब्रिलेटर का प्रयोग सामान्य रूप से एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के उपचार के लिए किया जाता है। यह डिवाइस लगातार हार्ट बीट को मॉनिटर करते हैं अगर इन डिवाइसेस को एक असामान्य हार्ट बीट या तेज हार्ट रिदम का अनुभव होता है। तो वो ऑटोमेटिकली एक स्मॉल इलेक्ट्रिकल शॉक रोगी के हार्ट को देते हैं। इसके कारण थोड़ी देर के लिए रोगी को परेशानी भी हो सकती है। यह डिवाइस पेसमेकर की तरह भी काम करते हैं। यही नहीं, यह फास्ट और स्लो दोनों तरह की रिदम्स का उपचार कर सकते हैं। लेकिन, इन डिवाइसेस की हर 3 से 6 महीने के अंदर जांच होनी चाहिए और हर 4 या 6 साल में इन्हें रिप्लेस करना भी जरुरी है।
कैथेटर एबलेशन (Catheter Ablation)
एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के उपचार के लिए कैथेटर एबलेशन (Catheter Ablation) का प्रयोग भी किया जाता सकता है। इसके साथ हार्ट का वो हिस्सा जो असामान्य हार्टबीट का कारण बन रहा है, उस टिश्यू को नष्ट करने के लिए पहले इसे पहचाना जाता है और उसके बाद काउट्राइज्ड (Cauterized) यानी दागा जाता है। इस इनवेसिव प्रोसीजर को इलेक्ट्रोफिजियोलॉजी लेबोरेटरी में किया जाता है और इससे एरिथमिक एपिसोड्स (Arrhythmic episodes) की फ्रीक्वेंसी को कम किया जा सकता है
इस स्थिति में हार्ट के हुआ डैमेज अगर गंभीर हो तो हार्ट ट्रांसप्लांट (Heart Transplant) की जरूरत भी हो सकती है हालांकि यह दुर्लभ है। यह तो इस हार्ट डिजीज के उपचार। अब पाइए एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) की स्थिति को मैनेज करने की जानकारी।
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एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया को कैसे मैनेज करें?
जैसा की आप जान ही गए होंगे कि एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) एक जानलेवा हार्ट डिजीज (Heart Disease) है। ऐसे में अगर आपको यह समस्या है, तो इसे किस तरह से मैनेज किया जाए इसके बारे में जानना भी आपके लिए बेहद जरूरी है। जानिए, कैसे किया जा सकता है इस स्थिति को मैनेज:
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यह तो थी एरिथमोजेनिक राइट वेंट्रिकुलर डिसप्लेसिया (Arrhythmogenic Right Ventricular Cardiomyopathy) के बारे में पूरी जानकारी। इस समस्या या किसी भी हार्ट डिजीज के खतरे से बचने के लिए जरूरी है अपने हेल्दी लाइफस्टाइल को बनाए रखना। इसमें सही आहार का सेवन, नियमित व्यायाम, पर्याप्त नींद, तनाव से बचाव आदि शामिल हैं। इसके साथ ही अपनी नियमित रूप से जांच कराना न भूलें और डॉक्टर की सलाह का पालन करना भी आवश्यक है। अगर आपके मन में इस समस्या को लेकर कोई भी सवाल या चिंता है तो अपने डॉक्टर से बात करें।
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