बांदू के इस शिवलिग की कई राजाओं ने की है पूजा, रावण ने की थी स्थापना

सासाराम : नौहट्टा प्रखंड के सोन नदी में एक विशाल शिलाखंड पर बने चबूतरे पर स्थापित दसशीषानाथ शिवलिग अति प्राचीन है। रोहतासगढ़ के शासक रहे खरवार राजाओं द्वारा यहां शिलालेख लिखवाए गए हैं, जिसमें कई राजाओं द्वारा इस शिवलिग की पूजा करने का वर्णन है। किवदंती है कि इस शिवलिग को लंकापति रावण द्वारा स्थापित किया गया था, जिसके कारण इसका नाम दसशीषानाथ पड़ा। यह शिवलिग आस्था का केंद्र है।

बांदू गांव से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित सोन नदी की धारा में जहां दक्षिण से आ रही कोयल नदी और उत्तर में स्थित उल्ली पहाड़ी से निकलने वाली सरस्वती नामक छोटी नदी संगम करती है वहां विशाल शिलाखंड पर बने चबूतरे पर स्थापित शिवलिग की प्राचीनता के बारे में शिलालेख राजाओं द्वारा लिखवाया गया है। स्थानीय किवदंतियों के अनुसार शिवलिग को लंकापति रावण द्वारा स्थापित किया गया था, जिसके कारण इसका नाम दसशीषानाथ पड़ा। फ्रांसिस बुकानन ने 1812-13 ई. के अपने यात्रा वृतांत में इस शिवलिग को द्वारिश्वर महादेव बताया है। शिवपुराण में है वर्णन :

प्रसिद्ध विद्वान हवलदार त्रिपाठी सहृदय ने अपनी पुस्तक दक्षिण बिहार की नदियां धार और कछार में माना है कि शिव पुराण में मिथिला से लंका जाते समय जिस शिवलिग के रावण द्वारा स्थापना की बात की गई है वह बांदू का ही शिवलिग है। खरवार व चेरो राजाओं की आस्था का रहा है केंद्र
रोहतास का सामाजिक एवं सांस्कृतिक इतिहास पर शोध कर चुके डा.श्याम सुन्दर तिवारी बताते हैं कि रोहतासगढ़ के शासक रहे खरवार राजाओं द्वारा यहां शिलालेख लिखवाए गए हैं जो संवत् 1219 सन् 1162 ई. का है। इसके अलावा चेरो जनजातीय राजाओं से संबंधित भी शिलालेख यहां हैं। इन शिलालेखों में पलामू के प्रारंभिक राजाओं का विवरण है जिसमें उनके द्वारा पूजा करने की बात कही गई है। राजा मान सिंह के भी रहे हैं अराध्य देव
मुगल काल में संयुक्त बिहार बंगाल का शासन रोहतास गढ़ से होता था। प्रांतीय राजधानी इसे घोषित किया गया था। यहां शासन करने वाले राजा मान सिंह के भी दसशीसा नाथ आराध्य देव रहे हैं। इसी कारण शिवलिग के चबूतरे से पूरब में एक लंबी चट्टान पर उन सभी राजाओं के नाम व तिथि अंकित है जो यहां दर्शन-पूजन के लिए आए थे। इसी चट्टान पर राजा प्रतापधवल देव और उनके वंशजों का वर्णन है। इनमें महानृपति उदयधवल, महानृपति प्रतापधवल, महानृपति विक्रमधवल देव, महानृपति सहसधवल से लेकर महानृपति उदय चंद्र तक के नाम हैं। इसकी लिपि प्राचीन है। राजा मान सिंह का भी यहां नाम खुदा हुआ है।

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