पहले धुरखेल फिर रंग इसके बाद अबीर लगाकर एक-दूसरे को देते हैं होली की शुभकामना

मोतिहारी। फाल्गुन महीना चढ़ते ही लोगों में होली का शुरुर चढ़ने लगता है। गांव से बाहर कार्य करने वाले लोग अपने घर आने की तैयारी करने लगते है। वैसे तो होली के मौके पर अधिकांशत: बाहर रहने वाले लोग अपने परिवार के साथ होली मनाने घर पहुंचते है। लेकिन प्रखंड क्षेत्र के हरनाही पंचायत गोनहा के मिश्रा टोला में होली का एक विशेष रंग है। कई पीढि़यों से यह एक प्रथा के रुप में चली आ रही है। अन्य कार्य के लिए गांवों कई दलों में बंट जाता है। परंतु होली के दौरान सभी लोग एकजुटता के साथ इसे मनाते है। इस गांव के बुजुर्ग राघोशरण मिश्रा ने बताया कि हमलोग जब बच्चे थे तब से देखते आ रहे है। आज भी उसी अंदाज में बच्चे रंगों के इस पर्व को मनाते है। होलिकादहन से दो दिन पूर्व मध्यरात्रि में होलिकादहन वाले स्थान पर बांस गाड़ दिया जाता है। यह कार्य गांव के बुजुर्ग के द्वारा किया जाता है। फिर अगले दिन बच्चे, नौजवान वहां पुआल, खर पतवार, गोइंठा आदि एकत्रित करते है। फिर होलिकादहन के दिन गांव के अंतिम छोर से सभी लोग घर-घर जाकर होली का गीत गाते ढोल मंजीरा आदि बजाते हुए होलिकादहन स्थल पर पहुंच जलाते है। फिर उसे अगले दिन यानी सुबह-सुबह एक साथ गीत गाते हुए स्थल पर पहुंच सम्मत यानी होलिकादहन को बुझाते है। जिसे स्थानीय भाषा में धुरखेल खेलना शुरु कर देते है। जो सुबह में करीब दो घंटे तक चलता है। इस दौरान गोबर, मिट्टी पानी लगाते हुए गांव के पश्चिम बहती हुई तिलावे नदी में स्थान करने जाते है। इसके बाद तिलावे नदी के तट पर स्थित जो फिलहाल कुछ दूर हो गया है। गांव की कुल देवी सती माई की पूजा-अर्चना कर घर पहुंचते है। इसके बाद घर के देवी-देवता की पूजा कर अबीर मेवा व पुआ पकवान चढ़ाते है। फिर रंग लगाने व एक-दूसरे को पुआ पकवान खिलाने का दौर शुरु हो जाता है। इसके बाद दोपहर के बाद से अबीर लगाने का दौर शुरु हो जाता है। साथ ही गवैया ढोलक, झाल आदि लेकर घर-घर पहुंच होली गाते है। जो देर रात चलता है। फिर इसके बाद सभी लोग एक जगह बैठकर नाच-नौटंकी देखते है।


गांव में आने से कतराते है रिश्तेदार
इस गांव में होली के दिन खासकर मामा, फुफा या जीजा जैसे रिश्तेदार आने से कतराते है। यदि भुल से कोई पहुंच भी गया तो बाहर नहीं निकलना चाहता है। लोग केवल इसी बात का पता लगाते है कि किसके घर इस तरह के रिश्तेदार पहुंचे है। वैसे लोगों को किसी तरह घर से बाहर बुलाकर दिनभर उनके साथ मिट्टी, पानी, रंग आदि लगाकर होली मनाते है।
होली के दिन बच्चे बुजुर्ग व नौजवान सभी हो जाते है एक समान
इस गांव में एक परंपरा सी बन गई है। होली के दिन गांव के बच्चे, बुजुर्ग व नौजवान सभी एक समान हो जाते है। सब कोई एक-दूसरे को रंग अबीर लगाकर होली की शुभकामना देते है। ढोलक झाल झिलिम पर होली का गीत गाते हुए सभी एक साथ नाच गान करते है। किसी तरह का कोई भेदभाव देखने को नहीं मिलता है। जो अन्य गांवों की होली से अलग करता है।

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