विवि में 18 मई से शुरू होगा 30 दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला



संवाद सूत्र, सिंहेश्वर (मधेपुरा) : बीएन मंडल विवि परिसर स्थित केंद्रीय पुस्तकालय में 18 मई से 16 जून तक पांडुलिपि विज्ञान व लिपि विज्ञान पर केंद्रित 30 दिवसीय उच्चस्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा अनुदान प्राप्त हुआ है। कार्यशाला के सफल आयोजन के लिए एक आयोजन समिति का गठन किया गया है।
कुलपति डा. आरकेपी रमण प्रधान संरक्षक व प्रति कुलपति डा. आभा सिंह संरक्षक बनाए गए हैं। पूर्व कुलपति डा. अवध किशोर राय, जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा के कुलपति डा. फारूक अली, बीएचयू, वाराणसी के डा. डीके सिंह व महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी के डा. आरके चौधरी को सलाहकार समिति में स्थान दिया गया है। केंद्रीय पुस्तकालय के प्रोफेसर इंचार्ज डा. अशोक कुमार को संयोजक और उप कुलसचिव (अकादमिक) डा. सुधांशु शेखर को आयोजन सचिव की जिम्मेदारी दी गई है। केंद्रीय पुस्तकालय के पृथ्वीराज यदुवंशी इवेंट मैनेजर और सिद्दु कुमार कोषाध्यक्ष बनाए गए हैं। आयोजन सचिव डा. सुधांशु शेखर ने बताया कि कार्यशाला में अधिकतम 30 प्रतिभागी भाग ले सकेंगे। पंजीयन की अन्तिम तिथि 17 मई तक निर्धारित है।

उन्होंने बताया कि कार्यशाला पूर्णत: नि:शुल्क है। बाहर के प्रतिभागियों के लिए आवास व भोजन की उत्तम व्यवस्था रहेगी। प्रतिभागियों को तृतीय श्रेणी का वातानुकूलित रेल या बस किराया दिया जाएगा।
भारत में है 10 लाख पांडुलिपि भारत के पास 10 मिलियन पांडुलिपियों का अनुमान है, जो शायद दुनिया का सबसे बड़ा संग्रह है। भारत की यह विरासत अपनी भाषाई और लेखन विविधता में अद्वितीय है। इस विरासत को समझने के लिए अध्ययनकर्ताओं में लिपियों के संबंध में विशेषज्ञता आवश्यक है। इस दिशा में यह कार्यशाला एक महत्वपूर्ण प्रयास है। आशा है कि यह कार्यशाला पांडुलिपियों को सुरक्षित करने और उनकी ज्ञान सामग्री को सुलभ बनाने में मददगार होगी।
क्या है पांडुलिपि विज्ञान व लिपि विज्ञान
पांडुलिपि विज्ञान व लिपि विज्ञान पांडुलिपि व लीपि का एक व्यवस्थित, क्रमबद्ध व वैज्ञानिक अध्ययन है। इसका मुख्य विषय कच्चे माल की तैयारी (कागज, भोजपत्र, ताल पत्र, स्याही, स्टाइलस) लिपि व वर्णमाला के विकास का अध्ययन, अनुवाद, व्याख्या, ग्रंथों का पुनर्निर्माण, पाण्डुलिपियों का परिरक्षण, संरक्षण एवं भंडारण, संग्रहालयों व अभिलेखागारों की डिजाइनिग, भाषा विज्ञान, लिखित परंपराओं का ज्ञान, आलोचनात्मक संपादन पाठ व सूचीकरण आदि है।

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