नेपाल में हो रही बारिश का असर, मानसून से पहले ही गंडक नदी के जलस्तर वृद्धि

बगहा । बिहार में अभी मानसून ने दस्तक भी नहीं दी कि गंडक नदी के जलस्तर में उतार-चढ़ाव शुरू हो गया है। नेपाल में हो रही बारिश के कारण गंडक नदी का जलस्तर बढ़ गया है।

सामान्यत: गंडक नदी में जून के अंत में जलस्तर में बढ़ोत्तरी दर्ज की जाती है। लेकिन, पहली बार जून के पहले ही सप्ताह में जलस्तर 50 हजार क्यूसेक को पार कर गया है। जलस्तर पर नेपाल की बारिश का सीधा प्रभाव पड़ता है।
राज्य सरकार ने इस साल बाढ़ की अवधि को बढ़ा दिया है और उसे एक जून से ही मान्य कर दिया है। इसीलिए गंडक के इस अप्रत्याशित जल वृद्धि की परस्पर निगरानी हो रही है। सामान्यत: बाढ़ अवधि की गणना 15 जून से 31 अक्टूबर तक होती है। बाढ़ पूर्व तैयारी को लेकर जल संसाधन विभाग के द्वारा कई दावे किए जा रहे हैं। हालांकि बाढ़ अवधि प्रारंभ होने पर इसकी जानकारी ससमय उपलब्ध कराई जा रही है। करीब एक सप्ताह पूर्व जहां गंडक का डिस्चार्ज 30 हजार क्यूसेक से कम दर्ज किया जा रहा था, वहीं मंगलवार की सुबह का डिस्चार्ज 37 हजार आठ सौ क्यूसेक दर्ज किया गया।

चकदहवा निवासी गुलाब अंसारी इन दिनों गंडक नदी की ओर देखते हैं तो डर के मारे सिहर उठते हैं। गंडक नदी में इस साल भी पानी बढ़ रहा है। नदी के कहर से बचने के लिए गुलाब के पास विस्थापन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। बाढ़ आने पर वह अपने बीवी-बच्चों के साथ चार माह बांध पर गुजारा करेंगे। गुलाब की तरह ही चकदहवा में रहने वाले सैकड़ों लोगों के माथे पर चिता की लकीरें साफ दिखने लगी हैं। गुलाब बताते हैं कि पानी अगर इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो आने वाले दिनों में घरों में पानी घुस जाएगा।
पानी बढ़ने की जो रफ्तार है, उसे देखकर लगता है कि इस साल भी बाढ़ हमारा घर उजाड़ देगी। पिछले साल बाढ़ आई थी तो गुलाब को अपने बाल-बच्चों संग बांध पर शरण लेनी पड़ी थी, इस साल भी वह यही करेंगे। एक-एक पल गुजरने के साथ बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
जलस्तर बढ़ने से इनको विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा। इसके अलावा बाढ़ से घर बर्बाद होंगे और मवेशी मारे जाएंगे, वह नुकसान अलग होगा। अब तक बाढ़ के कारण सात बार विस्थापित हो चुके हैं। वह कहते हैं, 'नदी की पेटी पूरी तरह भर चुकी है। बाढ़ कब आ जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है, पहले की बाढ़ के दौरान आई कठिनाइयों को याद करते हुए वह कहते हैं, बाढ़ आती है, तो बांध पर जाना पड़ता है। खाने से लेकर पीने के पानी तक के लिए जूझना पड़ता है। बाढ़ दिनों में सबसे बुरा वक्त मवेशियों का होता है। उनके लिए चारे का इंतजाम भी मुश्किल होता है।'
बाढ़ में घर टूटने व मवेशियों के मरने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता है। हां, अगर फसल बर्बाद हुई, तो कुछ रुपये मिल जाते हैं। जिस रफ्तार से जलस्तर बढ़ रहा है, उसे देखकर लगता है कि इस साल भी बाढ़ का कहर झेलना पड़ेगा। नेपाल में हो रही बारिश से जलस्तर तेजी से बढ़ रहा है। बहरहाल, जलस्तर में वृद्धि के बावजूद सरकार के द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए है। अलबत्ता जल संसाधन विभाग की तरफ से यह आश्वासन जरूर मिल रहा है कि अभियंता बाढ़ से निपटने को पूरी तरह तैयार है।

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