आज भी महंगे सूद के जाल में कई परिवार, मूल से अधिक दे देते ब्याज

बगहा। रामनगर प्रखंड क्षेत्र में भी लंबे समय से सूद का कारोबार चल रहा है। मूल से ज्यादा चुकाने के बाद सूद की राशि ज्यों की त्यों बनी रहती है।

महाजनों का नाम काफी पहले से सुना जाता है। जो जरूरतमदों को महंगे ब्याज दरों पर पैसे देते थे। इसके बदले में जमीन व घर ले लेते थे। यह प्रथा जमींदारी काल से चली आ रही है। आज के समाज में भी बदस्तूर जारी है। जिसके कारण कई परिवारों की जिदगी उजड़ गई है। ऐसा नहीं है कि यह सूदखोरी का काम केवल दूसरे क्षेत्रों में चल रहा है। बल्कि स्थानीय स्तर पर भी इसका बोलबाला है। पर, यह काम पर्दे के पीछे चलता है। सूत्रों से पता चला है कि तीन से लेकर 10 प्रतिशत तक के ब्याज लोगों से वसूले जाते हैं। जरूरतमंद मजबूरी में पैसे उठाते हैं। जिनका ब्याज भरते भरते ही कई साल गुजर जाते हैं। जबकि मूलधन पड़ा ही रहता है। स्थानीय स्तर पर नहीं मामला स्थानीय स्तर पर यह कार्य बिना लाइसेंस के चलता है। इसलिए अधिकतर लोग लेन देन का काम गुप्त रखते हैं। जरूरतमंद किसी को बताता नहीं है। वहीं पैसे देने वाले महाजन को फायदे से मतलब रखता है। लेन देन के क्रम में पैसे लेने वालों से सादा चेक, स्टांप वाले कागज पर लिखवाकर लिया जाता है। कहीं कहीं रुपये के लेन देन में जेवर व जमीन को भी गिरवी रखा जाता है। पैसे समय से नहीं देने की स्थिति में जेवर या जमीन को महाजन अपने नाम से करवा लेते हैं। कभी कभी इस काम में गुंडे व मवालियों की भी मदद महाजन लेते हैं। ---------------------- कहते हैं लोग -------------------- करण मुसहर का कहना है कि गांवों में अगर कोई बीमार हो, किसी के घर बेटी की शादी हो। तभी, पैसे का लेन देन किया जाता है। पर, महाजन इसका फायदा उठाते हैं। गांवों में मासिक पांच से लेकर 10 प्रतिशत से कम ब्याज पर रुपये नहीं मिलते हैं। दिनेश पटेल का कहना है कि अपनी जरूरत के हिसाब से पैसे लिए जाते हैं। पर, महाजन ब्याज व मूलधन के लिए दबाव बनाते हैं। समय पूरा होते ही घर पर धमक आते हैं। ------------------- बयान : स्थानीय स्तर पर इस तरह के लेन देन का मामला सामने नहीं आया है। अगर आवेदन मिलता है तो, अवश्य कार्रवाई की जाएगी। अनंत राम, थानाध्यक्ष

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