जीरो टिलेज से धान की खेती करना किसानों के लिए है बेहतर विकल्प : बीएओ

संवाद सूत्र, पुरैनी (मधेपुरा)। वर्तमान समय में जीरो टिलेज से धान की सीधी बुआई करना प्रखंड क्षेत्र के किसानों के लिए बेहतर विकल्प है। धान की उन्नत व लाभदायक खेती के लिए परंपरागत विधि से हटकर जीरो टिलेज विधि लाभदायक साबित हो सकता है।

इसका प्रयोग अधिक व कम नमी वाले खेतों में भी किया जा सकता है। किसान समान बुआई से दो-तीन सप्ताह पहले जीरो टिलेज के माध्यम से बुआई कर सकते हैं। उक्त बातें प्रखंड कृषि पदाधिकारी ओमप्रकाश यादव ने कही। उन्होंने कहा कि बिहार में धान की खेती का क्षेत्रफल अन्य फसलों के तुलना में अधिक है। यहां के किसान आज भी इसकी बुआई परंपरागत तरीके से हल के पीछे मसानी कर पौराणिक विधि से करते आ रहे हैं। इसमें श्रमधन, समय व उर्वरक की लागत काफी ज्यादा आती है। साथ ही धान के फसल की कटनी में भी प्राय: विलंब हो जाया करती है। इस कारण प्रखंड क्षेत्र में गेहूं की खेती में हर साल विलंब हो जाया करती है। इसके अतिरिक्त जलजमाव वाले खेतों में समय पर खेती नहीं हो पाती है। उन्होंने कहा कि ऐसे में प्रखंड क्षेत्र के किसान धान की बुआई जीरो टिलेज के माध्यम से करें तो इन समस्याओं से काफी हद तक छुटकारा मिल सकता है। उन्होंने कहा कि परंपरागत विधि की तुलना में जहां जीरो टिलेज के माध्यम से जुताई के खर्च में काफी बचत होती है। वहीं इस विधि से 15 से 20 दिन पूर्व फसल की अग्रिम बुआई की जा सकती है। लिहाजा 20 से 25 प्रतिशत ज्यादा उपज होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही इस विधि से धान की बुआई करने से 15 से 20 प्रतिशत पानी की भी बचत होने के अलावे खेत में मोथा सहित अन्य खरपतवार की संख्या में काफी कमी होने से निकोनी की समस्या से भी निदान मिलती है। उन्होंने बताया कि पंक्तिबद्ध व यांत्रिक विधि से बुआई करने पर खेतों में लगे फसलों पर नियंत्रण करना भी काफी आसान होता है। साथ ही उत्पादन खर्च में काफी कमी व उपज में वृद्धि से किसानों के लाभ में दोगुना वृद्धि होती है। इसके अलावा कम जुताई होने से मिट्टी संरचना में जहां गिरावट होती है। वहीं सिचाई व जुताई में कमी के कारण पंपसेट व ट्रैक्टर जैसे उपकरण के रखरखाव में भी बचत होने के अलावे धान-गेहूं फसल चक्र में दोनों की उपज सहित पौधों की गुणवत्ता में भी वृद्धि होती है।
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