प्रशासन की सूची से भी गायब हो रहा मुक्त बंधुआ मजदूरों के नाम

संस, सहरसा: बंधुआ और बालश्रम रोकने के लिए सरकार नित्य कानून को कठोर करने की बात कर रही है जबकि जिले में 2018 तक नकद पेंशन प्राप्त करने वाले बंधुआ मजदूरों का पेंशन तो बंद हो गया बल्कि सूचना पूछने पर प्रखंडों से जवाब यही मिलता है कि मुक्त बंधुआ मजदूरों की संख्या शून्य है।

दरअसल जिले में 1991 से 2017 तक 377 बंधुआ मजदूर मुक्त कराए गए थे। इनमें से सरकार के द्वारा 189 को मुक्ति प्रमाण पत्र भी प्राप्त हैं। इन विमुक्त बंधुआ मजदूरों को पुनर्वास योजना का भी लाभ दिया गया। लगातार पेंशन प्राप्त करने वाले इनलोगों को प्रखंड स्तरीय पदाधिकारियों द्वारा सिरे से खारिज किया जा रहा है।

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195 को शिकायतों के बाद भी नहीं मिला प्रमाणपत्र
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20 नवंबर 1991 से 14 नवंबर 2017 तक सहरसा, मधेपुरा व सुपौल जिले के 377 बंधुआ श्रमिकों को विभिन्न प्रांतों से मुक्त कराया गया। इसमें 182 को वैधानिक रूप से 182 को मुक्ति प्रमाणपत्र भी प्राप्त है। इसके 132 को आंशिक पुनर्वास किया गया है। अर्थात मुक्ति प्रमाणपत्र प्राप्त इन बंधुआ श्रमिकों को पुनर्वास का लाभ नहीं दिया जा सका है। शेष 195 विमुक्त बंधुआ मजदूरों द्वारा मुक्ति प्रमाणपत्र के लिए प्रशासनिक अधिकारियों से मांग की है। बचपन बचाओ आंदोलन के प्रदेश पुनर्वास संयोजक घुरण महतो ने कहा कि ऐसे लोगों ने वर्ष 2009 में ही सहरसा व सुपौल आई मानवाधिकार आयोग की टीम ने जिलाधिकारियों को त्रिसदस्यीय कमेटी बनाकर मुक्ति प्रमाणपत्र देने और नियमानुसार योजनाओं का लाभ देने का निर्देश दिया था, जो अबतक नहीं हो सका। विमुक्त बंधुआ मजदूर के पेंशन के लिए सरकार ने प्रावधानों को शिथिल करने का निर्णय लिया था, परंतु इसका अनुपालन नहीं हो पा रहा है।
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सामाजिक सुरक्षा पेंशन भी हुआ बंद
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जिले के विभिन्न प्रखंडों में 87 विमुक्त बंधुआ मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा पेंशन का लाभ मिल रहा था। राज्य पेंशन योजना बंद होने के बाद इन लोगों को केंद्र की पेंशन योजना में समायोजित नहीं किया गया, जिससे ये लोग मिलने वाले लाभ से वंचित हो गए।
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बंधुआ मजदूरों का यह मामला काफी पुराना है। इसकी अद्यतन स्थिति क्या है। संचिकाओं के अवलोकन पश्चात आवश्यक कार्रवाई की जाएगी।
उज्जवल पटेल, श्रम अधीक्षक, सहरसा।

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