अमृत महोत्सव के तालाब से जगी उम्मीदों की किरण

जागरण संवाददाता, सुपौल: एक समय था जब कोसी का यह इलाका मछली और मखाना उत्पादन के लिए जाना जाता था। यहां की जलवायु भी इनके अनुकूल मानी जाती थी। इस क्षेत्र में ताल तलैया के साथ-साथ तालाबों की संख्या काफी अधिक थी। यहां से उत्पादित माछ और मखाना प्रदेश के अन्य हिस्सों में भेजे जाते थे। इससे यहां के लोगों को आमदनी भी अच्छी खासी हो जाती थी। परंतु कालांतर में इसमें काफी ह्रास हुआ है। बदलते समय के साथ यहां न सिर्फ तालाबों के अस्तित्व मिटते गये बल्कि कई ताल तलैया समतल भूमि का रूप लेता गया। परिणाम रहा कि इलाके की पहचान मिटती चली गई। अब जब सरकार ने जल जीवन हरियाली को बढ़ावा देने के लिए आजादी के अमृत महोत्सव पर अमृत सरोवर निर्माण करने की पहल की है तो एक बार फिर इस इलाके की खोई पहचान भी लौटने की आस जग चुकी है। इस अभियान के तहत जिले में अगले वर्ष तक में 75 तालाब ना सिर्फ अतिक्रमण से मुक्त होंगे बल्कि इनका जीर्णोद्धार भी किया जाएगा। जाहिर सी बात है कि ऐसे तालाबों में मछली पालन के साथ-साथ मखाना उत्पादन को भी बल मिलेगा।


-------------------------------
13 पोखरों पर शुरु है कार्य अमृत सरोवर के रूप में बनने वाले पोखरों को पूर्व में ही चिन्हित कर लिया गया है। चिन्हित किए गए पोखरों में से 13 पर कार्य भी शुरू कर दिया गया है। जब ये पोखर बनकर तैयार हो जाएंगे तो जल संरक्षण के साथ-साथ मछली पालन भी शुरू हो जाएगा। जिससे यहां के लोगों को न सिर्फ रोजगार मिलेंगे बल्कि इस कार्य से जुड़े लोगों की आमदनी भी बढ़ेगी। इसके अलावा मछली उत्पादन में बढ़ोतरी होने से यह इलाका इस मामले में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेगा। सरकार ने इस इलाके में मखाना खेती को बढ़ावा देने के लिए भी कई तरह की योजनाएं चला रही है। ऐसे में जब तालाबों का निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा तो फिर इस खेती को भी बल मिलेगा।
-------------------------------- मत्स्य विभाग भी करा रहा निर्माण
मत्स्य विभाग द्वारा भी जिले में तालाब के निर्माण कार्य कराए जा रहे हैं। इसके लिए सरकार द्वारा अनुदान भी दिए जाने की व्यवस्था है। किसानों को अनुदान मिलने से लोगों में पोखर निर्माण को ले उत्सुकता बढी है। यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो इस माध्यम से भी मछली उत्पादन में बढ़ोतरी होगी । पिछले 4 वर्षों में मत्स्य विभाग द्वारा जिले में करीब एक दर्जन नए पोखरों का निर्माण कार्य कराया गया है। जिसमें फिलहाल मछली उत्पादन का कार्य किया जा रहा है। इसके अलावा मनरेगा से भी पोखर निर्माण का कार्य कराया गया है। कुल मिलाकर जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए जिस तरह जिले में पोखरों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है तो निश्चित ही आने वाले दिनों में कोसी के इस इलाके की खोई पहचान वापस लौटने की संभावना बढ चली है।

अन्य समाचार