प्रतिबंध का नहीं दिखा असर, धड़ल्ले से जारी है पालीथीन का उपयोग

संवाद सहयोगी, जमुई : सिगल यूज पालीथीन सहित अन्य प्लास्टिक उत्पादक के उपयोग पर लगाए गए प्रतिबंध का जिले में शुक्रवार को कोई असर नहीं दिखा। अन्य दिनों की भांति ही शहर में दुकानदारों से लेकर ठेला चालक तक धड़ल्ले से पालीथीन का उपयोग कर रहे थे। ना दुकानदार और ना ही ग्राहक इसे लेकर गंभीर दिखे। आश्चर्य की बात कि प्रतिबंध को लेकर प्रशासनिक कवायद भी नहीं दिखी। शहर में इसके रोकथाम को लेकर नगर परिषद द्वारा भी चेकिग अभियान नहीं चलाया गया था। लोग बेरोकटोक प्रतिबंधित पालीथीन का उपयोग कर रहे थे। पालीथीन पर प्रतिबंध के बारे में लोगों की अपने-अपने तर्क थे, लेकिन मिट्टी स्वास्थ्य और उर्वरा शक्ति की बात आते ही लोग कंधा उचका निकल जाते रहे। पर्यावरण सहित लोगों के सेहत के लिए खतरनाक पालीथीन से दोस्ताना रिश्ता तोड़ना इनके लिए मुश्किल लग रहा था। शहर के महाराजगंज, महिसौढ़ी, पुरानी बाजार, बोधवन तालाब बाजार, थाना चौक सब्जी मंडी सहित मलयपुर, खैरा, गिद्धौर, सिकंदरा के बाजारों में पालीथीन का उपयोग निर्बाध रूप से शुक्रवार को भी जारी रहा। हालांकि कृषि विज्ञानी डा. सुधीर कुमार सिंह ने बताया कि पालीथीन के कारण खेत की उर्वरा शक्ति क्षीण हो जाती है। मिट्टी और खेती के लिए यह बहुत की खतरनाक है। इसके केमिकल से मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ता है।



नहीं हुआ जिला और सिटी टास्क फोर्स का गठन

पालीथीन उपयोग के रोकथाम को लेकर जिले में अभी तक सिटी और जिला टास्क फोर्स का गठन नहीं हो सका है। लिहाजा, प्रशासनिक कवायद शुक्रवार नहीं दिखी। हालांकि जिले में एक भी बायोप्लास्टिक प्रोडक्शन यूनिट भी अभी स्थापित नहीं किया गया है। उद्योग महाप्रबंधक नरेश दास ने बताया कि अभी तक बायोप्लास्टिक प्रोडक्शन यूनिट के लिए कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ है। इधर अनुमंडलाधिकारी अभय कुमार तिवारी ने जल्द ही टास्क फोर्स गठन होने की बात कही।

पटना, धनबाद से आता है सिगल यूज प्लास्टिक

जिले में सिगल यूज प्लास्टिक बनाने की एक भी मशीन नहीं है। इसकी आपूर्ति पटना, धनबाद, देवघर आदि शहरों से होती है। यहां से जिले के विभिन्न बाजारों में पहुंचता है।

साल में 900 टन पालीथीन का होता है उपयोग

छोटे-मोटे काम में उपयोग कर सोचते हैं कि इस छोटे से पालीथीन से पर्यावरण को क्या नुकसान होगा। आप जानकार आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि जिले में एक साल में 900 टन पालीथीन की खपत है। अगर इसका उपयोग रुक जाए तो जिले की मिट्टी से नौ सौ टन प्लास्टिक का वजन कम हो जाएगा। जमुई चेम्बर आफ कामर्स के उपसचिव नीतेश केसरी ने बताया कि सिगल यूज प्लास्टिक के कारोबार में जिले में 70 से 80 कारोबारी जुड़े हैं। हर महीने लगभग 60 लाख रुपये के पालीथीन की आपूर्ति होती है। 80 रुपये प्रति किलो की दर से पालीथीन की खरीदारी होती है। इस हिसाब से साल में 900 टन और महीने में 75 टन पालीथीन का उपयोग होता है।

वैकल्पिक व्यवस्था करना जरूरी

दुकानदारों ने बताया कि वो भी पालीथीन प्रतिबंध के समर्थक हैं। लेकिन सरकार को इसका वैकल्पिक उपाय भी कराना चाहिए था। सिर्फ प्रतिबंध लगाना कारगर नहीं, इससे परेशानी ना बढ़े यह भी देखना जरूरी है।

कपड़ा के थैला में देना होगा सामान

सरकार को वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करनी थी। पालीथीन बंद होने से सामान देने की परेशानी बढ़ गई है। ग्राहक भी थैला लाने की आदत भूल चुके हैं।
अनुज केसरी
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पर्यावरण के लिए अच्छा है। इस पर रोक लगना ही चाहिए लेकिन इसके वैकल्पिक उपाय को ढूंढ लेना चाहिए था। अभी हमलोग कपड़ा का थैला उपयोग करते हैं।
मुन्ना कुमार
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कपड़ा के थैला में ग्राहकों को सामान देना होगा। वजन अधिक होने पर कपड़े का थैला कमजोर पड़ जाता है। परेशानी बढ़ी है, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को थैला लाने की आदत हो जाएगी।
संजय भालोदिया
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कपड़ा का थैला दुकान में रखे हैं। ग्राहक के मांगने पर देते हैं। लेकिन ग्राहक इसका कीमत नहीं देना चाहते। इससे परेशानी हो रही है। वैकल्पिक व्यवस्था पर जोर देना चाहिए था।
सौरभ कुमार
पर्यावरण और सेहत का दुश्मन है पालीथीन

शहर निवासी सेवा निवृत प्रोफेसर अनिल सिंह, रौशन सिंह, धीरज सिंह और उमेश कुमार ने कहा कि पर्यावरण और मानव सेहत के लिए पालीथीन का उपयोग खतरनाक है। इस पर बहुत पहले ही रोक लग जानी चाहिए थी। आज डंप यार्ड से लेकर खेतों में पालीथीन का टुकड़ा नजर आता है। पालीथीन ना सड़ती है, ना गलती है बस वर्ष दर वर्ष जमीन के अंदर पड़ी रहती है और जहां पड़ी रहती है वहां की उर्वरा शक्ति समाप्त हो जाती है।

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