'शिक्षक के जज़्बे को सलाम' ३ साल से कॉलेज नहीं आये स्टूडेंट और नहीं मिली क्लास तो सैलरी में मिले 23 लाख रुपये लौटाए।

07 Jul, 2022 08:42 AM | Saroj Kumar 438

मुजफ्फरपुर,  बिहार में शिक्षा व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं, कहीं स्कूल का इन्फ्रासट्रक्चर तो कहीं कॉलेज में पढ़ाई नहीं होना मुद्दा बनता रहा है।


इसी बीच प्रोफ़ेसर ललन कुमार का अनोखा विरोध अब सुर्खियों में है। दरअसल मुजफ्फरपुर के भीमराव अम्बेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने अपनी तीन साल की सैलरी 23 लाख 82 हजार 228 रुपए यूनिवर्सिटी को लौटा यह बोलते हुए लौटा दी कि पढ़ाई नहीं तो तनख्वाह नहीं। ग़ौरतलब है कि वह तीन साल से विश्विद्यालय को पत्र लिख कर ऐसे कॉलेज में नियुक्ति की मांग कर रहे थे जहां बच्चे पढ़ने आते हों। प्रशासन ने प्रोफेसर ललन कुमार की मांग को अंदेखा कर दिया, इन सब मामलों से परेशान होकर उन्होंने अपनी तीन साल की तन्ख्वाह वापस करते हुए इस्तीफ़े की पेशकश कर दी।



नीतीश्वर कॉलेज के सहायक प्रोफेसर डॉ. ललन कुमार ने पत्रकारों से बातचीत में अपनी पूरी दास्तां सुनाई है। उन्होंने बताया कि बीपीएससी के ज़रिए 24 सितंबर 2019 को बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर चयन हुआ था। भीम राव अम्बेडकर बिहार यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर राजकुमार मंडिर ने सभी चयनित प्रोफेसरों की पोस्टिंग नियमों और शर्तों को बताते हुए मनमाने तरीके से की थी।


सहायक प्रोफेसर ललन कुमार ने बीआरए यूनिवर्सिटी के तत्कालीन वाइस चांसलर राजकुमार मंडिर पर गंभीर आरोपल लगाते हुए कहा कि रैंक और मैरिट को दरकिनार करते हुए उन्होंने कम अंक वाले लोगों को पीजी और बेहतरीन कॉलेज दिए। वहीं बेहतर रैंक और अच्छे मेरिट वालों को ऐसे कॉलेज दिए गए जहां पढ़ाई ही नहीं होती है। ललन कुमार ने कहा कि तीन सालों में छह बार तबादला और पोस्टिंग हुई लेकिन जिस कॉलेज में गया वहां किसी प्रकार की पढ़ाई ही नहीं होती है।



ललन कुमार ने कहा कि 4 बार आवेदन दे चुका हूं कि मेरा तबादला कर दिया जाए क्योंकि मेरे कॉलेज में पढ़ाई नहीं होती है। मैंने आवेदन लिखकर मांग की है कि पीजी डिपार्टमेंट, एलएस कॉलेज या आरडीएस कॉलेज में तबादला कर दिया जाए ताकि मैं बच्चों को पढ़ा सकूं क्योंकि इन कॉलेजों में पढ़ाई होती है। मैं चाहता हूं कि अपने ज्ञान से बच्चों को रोशन कर सकूं ताकि ज्ञान का सदुपयोग हो सके। लेकिन कई बार आवेदन देने के बाद भी तबादला नहीं किया गया।


अपनी परेशानियों का ज़िक्र करते हुए ललन कुमार ने कहा कि कई बार आवेदन देने के बाद भी मेरी बातों को अनदेखा कर दिया गया। इसलिए मैंने अपनी अंतरात्मा की सुनते हुए मुझे मिली तीन साल की तनख्वाह को विश्विविद्यालय को लौटाने का फ़ैसला लिया है। 25 सितंबर 2019 से मई 2022 तक मिली पूरी सैलरी यूनिवर्सिटी को वापस कर देना चाहता हूं। मेरे कॉलेज में छात्रों की तादाद जीरो है, इस वजह से मैं चाहकर भी अपने दायित्व को नहीं निभा पा रहा हूं। इसलिए बिना काम के सैलरी लेना मेरे नैतिकता के खिलाफ है।


सहायक प्रोफेसर ललन कुमार का आरोप है कि नितिश्वर कॉलेज में छात्र दाखिला तो ज़रूर लेते हैं लेकिन सिर्फ़ परीक्षा देने के लिए आते हैं। ऐसे सारे विद्यार्थी कॉलेज से नदारद रहते हैं। आंकड़े दिखाने के लिए कॉलेज में 1100 बच्चे पढ़ते हैं। हिन्दी डिपार्टमेंट में 110 बच्चे होने के बावजूद पिछले 3 सालों में मुश्किले से हिंदी के 10 क्लासेज भी नहीं हुए इसकी सबसे बड़ी वजह है कि छात्र कॉलेज आते ही नहीं हैं। ललन कुमार ने कहा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी के हिन्दू कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और जेएनयू से पीजी की पढ़ाई की। इन दोनों जगहों में मैं यूनिवर्सिटी टॉपर रहा। दिल्ली यूनिवर्सिटी से एमफिल और पीएचडी भी की है। राष्ट्रपति की तरफ़ से ग्रेजुएशन में एकेडमिक एक्सिलेंस अवार्ड से सम्मानित भी किया गया।


ललन कुमार ने बताया कि जब उन्होंने अपनी सैलरी वापस करने और इस्तीफ़े की पेशकश की तो पता चला ऐसा प्रावधान ही नहीं है। राम कृष्ण ठाकुर (यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार) ने बताया कि किसी भी प्रोफेसर से सैलरी वापस लेने का किसी तरह का कोई प्रावधान नहीं है। मामले को गंभीरता से लेते शिकायत की जांच कराई जाएगी। कॉलेज प्रिंसिपल को तलब कर पूरी जानकारी ली जाएगी। इसके साथ ही ललन कुमार जिस कॉलेज में तबादला चाहते हैं उन्हें तत्काल वहां डेप्युटेशन दे दिया जाएगा। अभी ललन कुमार का चेक और इस्तीफ़ा क़बूल नहीं किया गया है।



source:
oneindia.com

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