बीत गए 14 साल, नहीं खत्म हुआ वनवास

विनोद विनीत, उदाकिशुनगंज (मधेपुरा) : कुसहा त्रासदी का दर्द अब तक कम नहीं हुआ है। 2008 में आई बाढ़ ने मधेपुरा में तबाही मचाई थी। उस दौरान अनेक लोगों के आशियाने बह गए थे।

प्रशासन ने लोगों को आवास देने की घोषणा की थी, लेकिन अब तक मुरौत सहित अन्य गांवों के कई लोगों को आवास नहीं मिला है। लोग झुग्गी-झोपड़ी में रहने को विवश हैं। कुछ लोगों को सरकारी स्तर पर बसाया गया, जबकि कई लोग अब भी स्थापित होने की आस में हैं। कुछ लोगों ने तो सरकार की व्यवस्था से उम्मीद ही छोड़ दी है।
कोसी के कटाव घर हो गए थे विलीन आलमनगर के मुरौत गांव के करीब 532 लोगों का घर कोसी नदी कटाव में विलीन हो गया था। वर्ष 2020 में इस गांव के 148 लोगों को सरकार के द्वारा जमीन खरीद कर पुनर्वासित किया गया, जबकि बचे लोग अब पुनर्वासित के आस में है। इसी प्रखंड के छतोना बासा गांव के डेढ़ सौ लोगों के घर नदी में विलीन हो गए थे। इसमें 60 लोगों को पुनर्वासित किए गए। इसी तरह चौसा प्रखंड की फुलौत पूर्वी पंचायत के बड़ीखाल गांव के करीब ढाई सौ परिवारों के घर नदी में विलीन हुए थे। यूं कहे कि गांव का अस्तित्व मिट गया था। लोग फुलौत गांव के पास एनएच 106 के किनारे झुग्गी झोपड़ी डालकर गुजर बसर करने लगे। यहां के करीब 45 लोगों को ही पुनर्वासित करने की व्यवस्था सरकार ने की है। कुछ लोग करैल बासा के पास खुद की व्यवस्था से जीवन यापन कर रहे हैं। कुछ लोग फुलौत डाकबंगला से उत्तर एनएच किनारे झोपड़ी डाल कर रह रहे हैं। बारिश आने के बाद लोगों की परेशानी और बढ़ जाती है। वर्ष 1999 में कोसी के कटाव समाने आने लगा था। धीरे-धीरे करीब छह सौ परिवारों के घर कोसी में समा गए थे। पीड़ितों ने बताया दर्द रतवारा व मुरौत गांव के बीच टूटी सड़क पर बसेरा डाल कर रहने वाले कोसी कटाव के विस्थापित अजय ऋषिदेव, विजय शर्मा, उमेश पासवान, चंदन सिंह, संजय शर्मा, सुरेंद्र शर्मा, गीरो शर्मा आदि का कहना है कि कई बार जनप्रतिनिधि व अधिकारी से पुनर्वासित करने की गुहार लगा चुके हैं, लेकिन उन्हें पुनर्वासित किए जाने की दिशा में कोई ठोस उपाय नहीं किए गए हैं। व्यवस्था से नाराज लोगों ने तो यहां तक कह दिया कि बेदर्द क्या जाने गरीबों का दर्द। इन लोगों का दर्द साफ दिख रहा था। लोगों में व्यवस्था लेकर गुस्सा भी है।

करोड़ों खर्च के बाद भी नहीं बचा गांव कटाव से बचाव के लिए जल संसाधन विभाग कोपरिया (सहरसा) द्वारा पांच करोड़ से अधिक रुपये खर्च किए गए। यहां पर विभाग द्वारा वर्ष 2007 में 33 लाख, वर्ष 2008 में दो करोड़ 87 लाख की राशि खर्च की गई थी। कटाव रोकने के लिए वर्ष 2010 में 40 लाख, वर्ष 2011 में दो करोड़ 84 लाख रुपये खर्च किए गए। इसके बाद भी गांव नहीं बच पाया।
सरकार ने खरीदी थी चार एकड़ जमीन मुरौत गांव के विस्थापितों को बसाने के लिए सरकार ने प्रारंभिक तौर पर चार एकड़ 42 डिसमिल जमीन खरीद की थी। जमीन खरीदने में दो करोड़ 17 लाख 57 हजार छह सौ रुपये लगे थे। सभी लाभान्वित परिवार के नाम से जमीन का निबंधन किया गया है। जमीन आलमनगर के गंगापुर मौजा में अवस्थित है। शुरूआत में 148 लोगों को लाभ मिला है।
कोट बचे हुए लोगों के लिए जमीन चिह्नित करने का काम किया जा रहा है। जमीन चिह्नित होने के बाद प्रस्ताव भेजा जाएगा। साथ ही कटाव पीड़ितों का सत्यापन का काम भी किया जा रहा है। जल्द ही सभी को पुनर्वासित किया जाएगा। -राजीव रंजन कुमार सिन्हा,
एसडीएम, उदाकिशुनगंज

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