अंग्रेज सिपाहियों को रौंद युवाओं ने थाने पर फहराया था तिरंगा

अंग्रेज सिपाहियों को रौंद युवाओं ने थाने पर फहराया था तिरंगा

अरविंद कुमार, शेखपुरा : शेखपुरा का ढह रहा जर्जर पुराना थाना भवन अपने सीने में आजादी के आंदोलन और जिले के वीर सेनानियों की दर्जनों दास्तां छुपाये हुआ है। थाने का यह खपरैल भवन ऐतिहासिक स्मारक की तरह है। नौ अगस्त 1942 को जब गांधी जी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो के साथ करो या मरो का नारा दिया था, तब यहां के युवाओं ने अंग्रेज सिपाहियों के सीने पर चढ़कर इसी थाना भवन पर तिरंगा फहरा दिया था। देश की आजादी के लिए सिर में कफन बांधे युवाओं ने एक ही दिन 16 अगस्त 1942 को शेखपुरा के थाना और रजिस्ट्री कचहरी भवन के साथ बरबीघा में डाकबंगला और डाकघर के सरकारी भवन पर तिरंगा फहराया था। जिला स्मारिका में उल्लिखित आलेख के मुताबिक, गांधी के करो या मरो के नारे के बाद शेखपुरा के युवा भी आंदोलित हो गये थे। इसी में सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने का निर्णय लिया गया। तब शेखपुरा मात्र थाना मुख्यालय था।

शेखपुरा में चुनकेश्वर व बरबीघा में लाला बाबू ने की थी अगुवाई : सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने में शेखपुरा में सोहदी के चुनकेश्वर प्रसाद यादव तथा बरबीघा में तेउस के लाला बाबू ने अगुवाई की थी। लाला बाबू के साथ भगवती चरण वर्मा की भी बड़ी भूमिका थी। शेखपुरा में चुनकेश्वर प्रसाद के साथ जीयनबीघा के रामेश्वर महतो, शेखपुरा तरछा के बेचू राम व कोसरा के मेदनी शर्मा ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। सरकारी भवनों पर तिरंगा फहराने से पहले शेखपुरा के मौजूदा महादेव नगर के लुलही बगीचा में लोगों ने बैठक की। बैठक के बाद लोगों का हुजूम जुलूस की शक्ल में निकला। यही जुलूस पहले रजिस्ट्री कचहरी के भवन और बाद में थाना के भवन पर तिरंगा फहराया था। लोगों का हुजूम देखकर थाना पर तैनात अंग्रेज सिपाही डर से भाग खड़े हुए थे।
निकलता था हस्त लिखित संघर्ष बुलेटिन : 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान क्षेत्र के युवाओं में जोश भरने और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट करने में शेखपुरा से निकाले जाने वाले संघर्ष बुलेटिन का बहुत योगदान था। यह संघर्ष बुलेटिन प्रत्येक रविवार को निकलता था तथा यह पूरी तरह से हस्त लिखित होता था। तब इसका मुख्य केंद्र डीएम हाईस्कूल का छात्रावास होता था। बाद में यही छात्रवास एमएम गर्ल्स हाईस्कूल हो गया। छात्रावास में रहने वाले विद्यार्थी दिन में अपनी पढ़ाई करते थे और रात में लालटेन की रोशनी में जागकर संघर्ष बुलेटिन के लिए मैटर तैयार करते थे। यह हस्त लिखित बुलेटिन लोगों को मुफ्त में दिया जाता था।

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