आजादी के बाद बदलाव का बयार, बैलगाड़ी से मोटर कार तक सफर

संवाद सूत्र, हेमजापुर (मुंगेर) : 'भगवान नै करै कि पुरनका दिन फेर आबै..ओह ! बहुत कष्ट झेलै रहै सब लोग। चार आना में दिनभर मजदूरी करला के बाद भी सब कै पेट नैय भैरैय छलै हो बेटा। चार आना में दिन भर मजदूरी करने के बाद भी गुजारा नहीं होता था। यह कहना है धरहरा प्रखंड के हेमजापुर निवासी बजुर्ग वासुदेव दास का। अपनी यादाश्त पर काफी जोर देते हुए उन्होंने बताया कि आज से करीब 70-80 वर्ष पहले स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी खराब थी की मरीजों को पीठ पर लादकर या खाट पर सुलाकर चिकित्सक के पास कोसों दूर स्वजन पैदल जाते थे। इक्का- दुक्का स्कूल था। पढ़ाई के लिए भी पैदल ही जाना पड़ता था। सड़क खराब होने के कारण स्कूल से आने में रात हो जाती थी। लोग कुआं, गंगा व तालाब का पानी पीकर अपना जीवन किसी तरह व्यतीत कर रहे थे। गरीब लोगों की सारी उम्र बंधुआ मजदूरी में बीत जाती थी। लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिलता था। इतना कहते-कहते वासुदेव दास की आंखें भर आई। अपने आप को सहज करते हुए शांत भाव से गमछे से अपनी आंसू पूछने के बाद वे फिर से बोल पड़े-अब तो लोगों को मूलभूत और बुनियादी हर तरह की सुविधा मिल रही है। गांव में ही स्कूल-कालेज व अच्छी सड़कें बन गई है। उस समय बैलगाड़ी का ही सहारा था। आज बहुत सारी गाड़ियां चल रही है। किसानों को कई तरह की सुविधा मिल रही है जिससे अनाज का बहुत उत्पादन हो रहा है। लोगों को भरपेट भोजन मिल रहा है। वक्त के साथ बहुत कुछ बदल चुका है। सरकार अब सारी सुविधाएं दे रही है। देश तरक्की की राह पर चल पड़ा है। अब तो शहर जैसी सुविधा गांव के लोगों को मिल रही है इससे बढ़कर और क्या चाहिए? बहुत समय बदल गया। इतना कहने के बाद वे अपनी लाठी के सहारे डगमगाते बूढ़े शरीर को स्थिर किया और अपने कमरे में चले गए।


अन्य समाचार