हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के

चंदन चौहान, खगड़िया। आजादी की लड़ाई में फरकिया अर्थात खगड़िया का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। फरकिया के लोगों ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए। महिला और पुरुषों ने कंधे से कंधे मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ी। किशोरों, नौजवानों ने भी सीने पर गोलियां खाई। लेकिन तिरंगा को झुकने नहीं दिया। 1942 में जब बापू ने अंग्रेजों भारत छोड़ों की हुंकार भरी, तो हाथों में तिरंगा लिए, भारत माता की जय, का जयघोष करते हुए गांव-गांव से लोग निकल पड़े।

स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई का एक नामचीन नाम है संध्या देवी का। बीमार चल रही 101 वर्षीय संध्या देवी की याददाश्त आज भी मजबूत है। वे कहती हैं- आजादी की लड़ाई का मुख्य केंद्र गंगा नदी किनारे अवस्थित गोगरी अनुमंडल और सदर प्रखंड का मालती नदी किनारे अवस्थित माड़र-सबलपुर था। मूल रूप से सबलपुर निवासी संध्या देवी अभी खगड़िया के सन्हौली में रहती हैं। फिलहाल सदर अस्पताल में भर्ती हैं। संध्या देवी मात्र नौ वर्ष की उम्र में आजादी के दीवाने माता सरस्वती देवी और पिता विरंची प्रसाद 'जहाज' के साथ स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी। गोगरी थाने में उन्होंने दर्जनों बार अंग्रेजों के खिलाफ पर्चा चिपकाई थीं। रात के अंधेरे में पर्चा चिपका कर भाग निकलती थी।

संध्या की विवाह जेल में ही 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान दिनेश प्रसाद सिंह से तय हो गई थी। संध्या देवी कहती हैं- 1932 में पहली बार नौ साल की उम्र में माता-पिता के साथ भागलपुर जेल गई। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में दोबारा उन्हें जेल हुआ। उसी समय उनकी मुलाकात वहां सबलपुर गांव के दिनेश प्रसाद सिंह से हुई। दिनेश प्रसाद सिंह भी आजादी की लड़ाई में गिरफ्तार होकर जेल में थे। जेल से निकलने के बाद दोनों की शादी हुई।
संध्या देवी कहती हैं- कभी भी अंग्रेज सिपाहियों से नहीं डरी। जेल हुआ, लेकिन झुकी नहीं। वे गुनगुनाती हैं- हम लाए हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।

अन्य समाचार