संस्कृत गंगा का मूल स्थान रहा है मिथिला

दरभंगा। संस्कृत सभी भाषाओं की जननी है। समाज में बढ़ते कुरीतियों को नष्ट करने में संस्कृत भाषा का मुख्य योगदान है। हमारा कर्तव्य है कि अपने बच्चों को बाल्यकाल से ही संस्कृत के अध्ययन पर बल देना चाहिए। संस्कृत भाषा सभी प्रकार से परिष्कृत व कल्याणकारी भाषा है। उक्त बातें मंगलवार को संस्कृत भारती बिहार प्रांत के तत्वावधान में आयोजित वर्चुअल संस्कृत सप्ताह समारोह के उद्घाटन समारोह के संबोधित करते हुए वक्ताओं ने कही। कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेडी ने कहा कि भारत की भाषा भारतीय है। हम सभी भारतीय पुत्र हैं। इसलिए भारतीय होने के कारण हमें संस्कृत भाषा से प्रेम करना चाहिए। वर्षों से संस्कृत गंगा का मूल स्थान मिथिला रहा है । मिथिला के विद्वानों ने अपने शास्त्रीय उपस्थापन से ख्याति प्राप्त की है।


बतौर विशिष्टातिथि कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने कहा कि समाज के सकल कल्याणकारी भाषा संस्कृत है। सर्वप्रथम हमें सरल रूप में भाषा शिक्षण पर बल देना चाहिए। कार्यक्रम की शुरुआत अभिषेक त्रिपाठी के वैदिक मंगलाचरण से हुई। सरस्वती वन्दना परिधि सिंह आरात,ध्येय मन्त्र नीतू तिवारी,स्वागत गीत सिद्धि सिंह ने प्रस्तुत की। आगत अतिथियों का स्वागत प्रांत मंत्री डा. रमेश कुमार झा ने किया। वहीं प्रदेश के विभिन्न जनपदों के छोटे-छोटे बच्चों ने अतिथियों के समक्ष अपनी प्रस्तुति दी। इसमें गणेशस्तोत्र पाठ अभिराम अच्युत,एकल गीत वसुन्धरा कुमारी ,अष्टाध्यायी पाठ कुमार प्रताप तथा गीता पाठ शिवांशदेव दीक्षित की प्रस्तुति उत्कृष्ट रहा। कार्यक्रम का संचालन डा. मनीष कुमार झा व धन्यवाद ज्ञापन डा. त्रिलोक झा ने किया। शांति पाठ डा. गीता कुमारी ने किया। कार्यक्रम का संयोजन प्रांत प्रचार प्रमुख डा. रामसेवक झा एवं शिक्षण प्रमुख देव निरंजन दीक्षित ने किया। आनलाइन समारोह में लगमा आदर्श महाविद्यालय के प्राचार्य डा. सदानंद झा,राजेश कुमार मिश्र, विद्यासागर, अंशु कुमारी, डा. उमाकांत शुक्ल भी शामिल थे।
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