तब तन ढकने के लिए नहीं होता कपड़ा, आज मौसम के अनुरूप बदल लेते हैं परिधान

कहानी विकास की

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फोटो- 10 जमुई- 7
संवाद सूत्र, गिद्धौर(जमुई): विकास के पैमाने पर पहले और आज में बहुत अंतर है। आजादी से पहले और आजादी के बाद भी लोग आर्थिक रूप से कमजोर थे। अलग-अलग जगहों पर भिन्न चुनौती थी। तन पर ढंग से कपड़ा नहीं होता, ठंड में कंबल नहीं होता, फूस की छत से बरसात में पानी टपकता था, लोगों को साल भर के अनाज की चिता होती थी। पक्का घर तो सपना था। हालांकि उस दौर में सत्यकर्म, सिद्धांत और स्वाभिमान से समझौता नहीं होता था, गलत के सामने झुकते नहीं थे। धन से गरीब थे, लेकिन मन व ईमान से नहीं। गिद्धौर के वार्ड एक निवासी विभूति कुमार सिंह ने बताया कि दादाजी और पिता जी की जुबान से वसूल और सिद्धांत की सीख हमेशा मिलती थी। गलत-सही को धर्म से जोड़कर नरक और स्वर्ग समझाया जाता था। वे बातें हम अपनी पीढ़ी को नहीं बता पा रहे। समय के साथ विकास की गाड़ी दौड़ी। सुविधा विस्तार हुआ। अवसर बढ़े, आमदनी बढ़ी। उस वक्त की जटिल समस्या आज महज मामूली परेशानी लगती है। जैसे बीमारी, यातायात आदि। लोग रंग-बिरंगे परिधान पहन रहे हैं। मौसम के अनुसार कपड़े बदलते हैं। यह सब आमदनी और जीवन स्तर में सुधार से संभव हुआ। अब परम आवश्यक वस्तु के साथ-साथ विलासिता संबंधी सामान के उपयोग के आदी हो रहे हैं। वक्त के साथ अच्छे इलाज, अस्पताल, यातायात, मार्ग, रोजगार के अवसर सहित विभिन्न क्षेत्रों में संभावना बढ़ती गई है। इसके फलाफल में लोगों की आमदनी बढ़ी। लिहाजा, क्रय शक्ति में बढ़ोतरी हुई। गांव-गांव में विकास पहुंचा और उसकी सूरत बदल गई। सुदूर गांव के लोग भी इंटरनेट की सहायता से पूरे दुनिया से जुड़े हैं जो पहले के जमाने में सपना था। समय के साथ विकास हुआ, लेकिन भौतिक विकास के साथ वैचारिक विकास की समाज को सख्त जरूरत है।

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