जलजमाव प्रभावित किसान मिरेकल नट से खोलेंगे अपनी तकदीर

संसू, नवहट्टा (सहरसा)। कोसी तटबंध के बाहर जलजमाव से होनेवाली परेशानियों के बीच भी स्थानीय किसानों ने तरक्की की राह निकाली है। जिस भूखंड पर जलजमाव होता है, वहां लोगों ने मिरेकल नट की खेती की ठानी हैं। सिघाड़ा की इस विकसित प्रजाति से अधिक अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। बुढि़या चौभग्गा ड्रेनेज में इसकी खेती की तैयारी की जा रही है।

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क्या है मिरेकल नट
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मखाना अनुसंधान केंद्र दरभंगा की ओर से विकसित किए गए सिघाड़ा के नए प्रभेद 'मिरेकल नट' है। इससे बंपर उपज की संभावना जताई जा रही है। कोसी इलाकों के किसानों ने इस सिघाड़े की खेती करना शुरू किया है। किसान एक बार में ही दो फसल की उपज एक साथ कर सकते हैं।

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कब होगी रोपाई
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सिघाड़े की बेल की रोपाई जुलाई से लेकर अगस्त माह तक की जानी चाहिए। इसके बाद फसल अक्टूबर माह में लिया जाएगा। अच्छी पैदावार हुई तो प्रति बीघा डेढ़ से दो क्विटल तक सिघाड़े की फसल ली जा सकेगी। एक पौधे से पंद्रह सोलह सिगार फल प्रत्येक छह दिन पर तोड़ा जा सकेगा।
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मिरेकल नट से डेढ़ लाख का हुआ मुनाफा
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नवहट्टा के किसान धीरेंद्र कुमार मिश्र ने कहा कि दरभंगा के उनके संबंधी ने तीन हेक्टेयर में मखाना की फसल लगाई थी। मखाना की उपज लेने के बाद उन्होंने उसी तालाब में सिघाड़ा भी लगाया था। जिससे उन्हें करीब डेढ़ लाख रुपए का शुद्ध मुनाफा हुआ । उन्हीं से प्रभावित होकर चार-पांच किसान को साथ लेकर खेती शुरू कर रहा हूं। उन्होंने कहा कि कांटे वाले सिघाड़े की उपज करीब 35 टन प्रति हेक्टेयर होती है। जबकि बिना कांटे वाले इस सिघाड़े की उपज करीब 70 टन प्रति हेक्टेयर होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि बिना कांटे वाले इस नए सिघाड़े की कीमत बाजार में करीब 30 रुपये किलो मिलती है। उन्होंने कहा इस सिघाड़े को सुखा कर इसका नट निकाल कर भी वे बेच सकते हैं। जिससे मुनाफे में और भी वृद्धि होगी।
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किसान मित्रों का बनाया समूह
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सिघाड़े की खेती के लिए धीरेंद्र ने आसपास के कुछ किसानों को साथ लेकर खेती शुरू करने की ठानी है । शाहपुर के श्याम मुखिया, अनिल मुखिया, रोहित कुमार, मंझौल के मु. जिन्नत, कैलाश साह को भी सिघाड़े की खेती के लिए प्रोत्साहित कर अपने साथ किया है।
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बाजार में बढ़ी है मांग
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पर्व त्यौहार में सिघाड़े का उपयोग बढ़ जाता है। तोराई के समय नवरात्र होने के कारण बाजारों में इसकी मांग बढ़ जाती है । इसके अलावा सिघाड़े के आटे का प्रयोग कई तरह की दवा बनाने में किया जाता है । थायराइड और घेंघा रोग के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इसमें आयोडीन अधिक मात्रा में पाई जाती है। सिघाड़ा के सूखे फल 100 से सवा सौ रुपए प्रति किलोग्राम बिकता है।
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पोषक तत्व का खजाना होता है सिघाड़ा
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सिघाड़ा एक जलीय फल है। इसमें कई तरह के पोषक तत्व पाए जाते हैं। कृषि समन्वयक बी के मिश्रा ने बताया कि इसमें पानी 70 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 23, प्रोटीन 4 . 70 प्रतिशत, वसा 0.30 प्रतिशत, फाइबर 0.60 प्रतिशत, खनिज 1.4 प्रतिशत पाए जाते हैं।
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कोट
जलजमाव वाले क्षेत्र में जलीय फसल की खेती किसानों के लिए लाभदायक साबित होगी।
बीके मिश्रा
कृषि समन्वयक

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