1920 में ही अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे स्वतंत्रता सेनानी रामानुज सिंह

संसू.,बड़हिया (लखीसराय) : भारत की आजादी की लड़ाई में बड़हिया नगर एवं प्रखंड क्षेत्र के रणबांकुरों के अमूल्य योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। आजादी के 74 वर्ष बीत जाने के बाद भी बड़हिया की मिट्टी में यहां के क्रांतिकारियों की खुशबू आज भी फैली है। यहां के जांबाज क्रांतिकारी रामकृष्ण सिंह उर्फ सिद्ध जी, यमुना बाबू, रामरीझन प्रसाद सिंह, पंचानंद शर्मा, नुनूलाल सिंह, रामलखन सिंह, मथुरा पांडेय सहित कई क्रांतिकारियों ने अहम भूमिका निभाई थी। प्रखंड अंतर्गत हिर्दनबीघा के स्वतंत्रता सेनानी रामानुज सिंह के हिम्मत व बहादुरी के किस्से आज भी लोग यहां याद करके एक दूसरे को सुनाते हैं। रामानुज सिंह ने महात्मा गांधी के आह्वान पर 1920 के असहयोग आंदोलन, 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन तथा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाने के कारण ये अंग्रेजी सरकार की आंखों में हमेशा खटकते रहते थे। रामानुज सिंह की नतनी सुधा कुमारी वर्तमान में अपने नाना के घर में ही रहती है। उन्होंने बताया कि मेरे नाना 1920 के असहयोग आंदोलन के दौरान बड़हिया के प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रामकृष्ण सिंह उर्फ सिद्ध जी, लखनलाल सिंह आदि के साथ बड़हिया से लेकर पटना तक आंदोलन में सक्रिय रहे। श्रीकृष्ण बाबू, शाह मुहम्मद •ाुबैर आदि के साथ मिलकर गांव-गांव में नमक कानून भंग करने का काम बहादुरी के साथ किया। इसके चलते नाना के घर को अंग्रेजी हुकूमत ने तोड़ दिया गया था। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में उनके द्वारा जयप्रकाश नारायण, बच्चू सिंह शास्त्री, श्रीकृष्ण सिंह, शाह मुहम्मद •ाुबैर, कपिलदेव सिंह आदि के साथ मिलकर मुंगेर, तारापुर, बरबीघा, बड़हिया, मोकामा में आंदोलन में प्रमुखता से भाग लिया। इस कारण वे पकड़े गए तथा इन्हें अठारह महीने की सजा हो गई। 1922 में गया में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन में भी शामिल हुए थे। देश की आजादी के बाद उन्होंने खादी के प्रचार व स्वदेशी अपनाओ के लिए भी संघर्ष किया था। इनकी एकमात्र संतान शारदा देवी का विवाह जिले के हलसी थाना के घोंगसा में हुआ था। वर्तमान में इनकी नातिन सुधा कुमारी इनके पैतृक घर हिर्दनबीघा में रहती हैं।

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