नौनिहालों के शोषण के खिलाफ 36 वर्षों से संघर्षरत हैं घुरण महतो

संस, सहरसा। गरीबी व भुखमरी के कारण दलालों के माध्यम से दूसरे प्रदेशों में जिदगी बर्बाद कर रहे नौनिहालों का शोषण रोकने और बचपन बचाने के लिए कोसी के कछार कंदाहा निवासी घुरण महतो 36 वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। बाल- बंधुआ मजदूरी के खिलाफ प्रदेशभर में अनवरत आंदोलन चलाने और लगभग तीन हजार बच्चों को विभिन्न खतरनाक उद्योग से मुक्त कराने के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2014 में राष्ट्रीय बाल कल्याण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार स्वरूप सम्मान राशि भी उन्होंने बच्चों के कल्याण हेतु सरकार को समर्पित कर दिया। उनके कार्य से प्रभावित होकर कैलाश सत्यार्थी तीन बार सहरसा आए और बच्चों की मुक्ति के लिए रणनीति बनाई।


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बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास हेतु किया जा रहा अनवरत प्रयास
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बचपन बचाओ आंदोलन के पुनर्वास संयोजक घुरण महतो सिर्फ बाल- बंधुआ मजदूरी के खिलाफ संघर्षरत नहीं हैं, बल्कि मुक्ति के बाद उनके पुनर्वास हेतु लगातार संघर्ष कर रहे हैं। स्थानीय प्रशासन की लापरवाही के कारण उन्होंने कईबार मानवाधिकार आयोग व उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया, तब सैकड़ों बच्चों को पुनर्वास का लाभ मिल सका। आज भी इस तरह के सैकड़ों बच्चों के पुनर्वास हेतु वे दिन- रात लगे रहते हैं। उनका कहना है बच्चे सस्ता और कभी विरोध नहीं कर पानेवाला श्रमिक होता है, जिसका नियोजकों द्वारा भरपूर शोषण किया जाता है। प्रशासन एकतरफ बच्चों का पलायन रोकने में विफल है, दूसरी तरफ पुर्नवासित किए जाने में भी लापरवाही बरती जाती है, जिससे मुक्त बंधुआ मजदूर पुन: शोषण की चक्की में पिसने लगते हैं। उनका कहना है कि जितना तक संभव होगा, वे इसके लिए जीवन भर प्रयास करते रहेंगे।

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