मशालें लेकर चलना, जब तक रात बाकी है

संवाद सूत्र, बेलदौर (खगड़िया): खगड़िया जिले के सुदूर बेलदौर प्रखंड का एक गांव है पचौत। यहां रहते हैं प्रभु नारायण चौधरी। प्रभु नारायण चौधरी अब उम्र के 70वें पड़ाव की ओर पहुंचने को अग्रसर है। लेकिन शोषण के विरुद्ध उनकी लड़ाई जारी है। झोपड़ी में रहकर वे महल वालों को चुनौती देते हैं। प्रभु नारायण चौधरी की झोपड़ी के ऊपर टंगा प्लास्टिक उड़ चुका है।

पचौत पुनर्वास निवासी प्रभु नारायण चौधरी के इस झोपड़ी में प्रतिदिन इलाके के गरीब, वंचित अपनी समस्याओं को लेकर पहुंचते हैं। प्रभु उनके हक की आवाज को बुलंद करते हैं। प्रभु के कदम जब बेलदौर प्रखंड, अंचल कार्यालय में पड़ते हैं, तो सभी इस दाढ़ी वाले की बात को ध्यान से सुनते हैं। उन्हें मालूम है कि प्रभु किन्हीं न किन्हीं वास्तविक पीड़ित की आवाज को लेकर पहुंचे हैं। उनकी कोशिश रहती है कि समस्या का समाधान हो। प्रभु का पाथेय बन चुका है-गरीबों, वंचितों को उनका हक-अधिकार दिलाना। शोषण के विरुद्ध उनका संघर्ष बीते कई दशकों से जारी है। उनके प्रयास से कई गरीबों को बासगीत का पर्चा मिला है। गरीब-गुरबा हर जगह से थक-हारकर प्रभु नारायण को याद करते है। प्रभु ने संघर्ष की राह वर्ष 1981 में चुनी और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1981 में छात्रों पर लाठीचार्ज के विरोध में बेलदौर थाना के सामने एक छात्र संगठन से जुड़े छात्र प्रदर्शन कर रहे थे। इस दौरान पुलिस ने गोली चला दी। इसमें हनुमान नगर गांव के छात्र परमानंद रजक की मौत हो गई। परमानंद रजक के स्वजन को न्याय दिलाने के आंदोलन में प्रभु ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। 1974 में पचौत पुनर्वास के चौकीदार रामेश्वर सदा का असमय निधन हो गया। अनुकंपा के आधार पर उनके भाई दशरथ सदा को नौकरी नहीं मिल रही थी। प्रभु समाहरणालय के समक्ष आमरण अनशन पर बैठे गए। तब जाकर दशरथ सदा की बहाली चौकीदार के पद पर हुई। ऐसे कई उदाहरण हैं। प्रभु हर हमेशा गुनगुनाते हैं- मशालें लेकर चलना, जब तक रात बाकी है।

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