यहां रची-बसी है स्वतंत्रता संग्राम की यादें, हंसते-हंसते प्राण किए न्योछावर

जागरण संवाददाता, खगड़िया: 1942 में बापू ने नारा दिया-अंग्रेजों भारत छोड़ो। इसकी चिगारी शीघ्र खगड़िया पहुंची। देखते ही देखते यह चिगारी दावानल का रूप ले लिया। हाथों में तिरंगा लिए गांव-गांव से स्वतंत्रता संग्रामियों का काफिला निकल पड़ा। आंदोलन के आग की लपटें देखकर अंग्रेज शासन ने बड़ी संख्या में अपनी फौज को खगड़िया भेज दिया। अंग्रेज फौज का एक बड़ा केंद्र मानसी रेलवे अधिकारी विश्रामालय बना। 13 अगस्त 1942 को जब मानसी प्रखंड के दो किशोर धन्ना और माधव हाथों में तिरंगा लेकर रेलवे अधिकारी विश्रामालय की ओर बढ़े, तो अंग्रेजों ने दोनों को गोलियों से छलनी कर दिया। दोनों देश के लिए बलिदान हो गए। 'अगस्त क्रांति' (लेखक बलदेव नारायण) में खगड़िया के वीर सेनानियों का विस्तार से जिक्र है। आजकल इतिहास के गहन अध्येता अमरीष कुमार इस किताब को आधार मानकर बलिदानियों की प्रतिमाएं लगे, इसको लेकर इंटरनेट मीडिया पर अभियान चला रखा है। उन्होंने शासन-प्रशासन को भी पत्र लिखा है। इस किताब में इस बात का जिक्र है कि पुराने मुंगेर जिला के खगड़िया अनुमंडल के एक गांव रोहियार के लोग सबसे अधिक बलिदान दिए। रोहियार का नाम आजादी के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।

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रोहियार के भुट्टा गोप को सितंबर 1942 में पुलिस की गोली लगी। घायल हुए और बलिदान का बरण किया। रोहियार के ही जागो गोप दो सितंबर 1942 को पुलिस गोली से घायल हुए और देश की खातिर बलिदान को बरण किया। रोहियार के ही
लालजी गोप, हुंकेरी कुमारी, पुत्री थेथर तेली ने देश के लिए प्राणों की आहूति दे दी। रोहियार के महादेव तेली ने सितंबर 1942 को देश की स्वतंत्रता के लिए सीने पर गोली खाई और बलिदान हो गए। ललित मंडल, महेशखूंट, को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान फिरंगियों ने 10 सितबंर 1942 को महेशखूंट रेलवे के निकट गोली मार दी। उन्होंने भी देश के खातिर प्राणों की आहूति दे दी। बलिदानियों की लंबी सूची है। लेकिन अफसोस, इनमें कुछेक को छोड़कर किन्हीं का स्मारक, प्रतिमा नहीं है। नई पीढ़ी इस उज्ज्वल इतिहास से अपरिचित है।
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आजादी के बलिदानियों की लगे प्रतिमा
खगड़िया: इनके स्मारक बने, प्रतिमा लगे, इसको लेकर इतिहास के अध्येता और सामाजिक कार्यकर्ता अमरीष कुमार लगातार अभियान चलाए हुए हैं। उन्होंने मुख्यमंत्री, बिहार, आयुक्त मुंगेर और खगड़िया डीएम को 17 फरवरी 22 को आवेदन देकर इस ओर ध्यान आकृष्ट कराया है। अमरीष कुमार कहते हैं- सभी बलिदानियों और उनके स्वजनों को सदा मान सम्मान मिलते रहने चाहिए। इसलिए उनकी प्रतिमा का निर्माण और जन्म व पुण्यतिथि मनाने की पहल होनी चाहिए। जिला के प्रमुख सार्वजनिक स्थलों पर स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानियों व स्वतंत्रता सेनानियों की सूची टंगी रहनी चाहिए। ताकि नई पीढ़ी को अपने उज्ज्वल इतिहास की जानकारी मिले।

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