निहत्थों के खून से लाल हो गई थी लुलही बगीचा की मिट्टी

निहत्थों के खून से लाल हो गई थी लुलही बगीचा की मिट्टी

9 सितंबर 1942 को अंग्रेज़ सिपाहियों ने निहत्थों पर ढाया था जुल्म अरविंद कुमार,शेखपुरा स्वतंत्रता आंदोलन में शेखपुरा के लोगों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था तथा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ सीना तानकर खड़ा हुए थे। तब शेखपुरा शासन का मात्र एक कोतवाली मुख्यालय था। यह जिला मुंगेर और अनुमंडल जमुई का इकाई मात्र था। यों तो देश में स्वतंत्रता आंदोलन की शुरुआत 1857 के सिपाही विद्रोह को माना जाता है, मगर शेखपुरा में अंग्रेजों के खिलाफ पहला बिगुल सदर प्रखंड के हसौरी गांव में 1921 में फूंका गया था। तब इस गांव के निवासी दो सहोदर भाइयों शौकत अली और शमीम अली ने पटना से आकर गांव में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहली बैठक की थी। हालांकि इसका क्षेत्र में बहुत प्रभाव नहीं पड़ा, मगर क्षेत्र के युवाओं के मन में यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ भावना भड़कनी शुरू हुई। क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की असली चिंगारी 1942 का अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे से लगी। इस आंदोलन की शुरुआत शेखपुरा और बरबीघा में 12 अगस्त को हुई। इसी कड़ी में 9 सितंबर, 1942 शेखपुरा के लिए काला दिन साबित हुआ, आज के महादेव नगर में अवस्थित शेखपुरा के लुल्ही बगीचा की धरती क्रांतिकारियों के लहू से लाल हो गया था। अंग्रेजों के खिलाफ लोगों को एकजुट करने के लिए शहर के कुछ युवकों ने लुल्ही बगीचा में सभा रखी थी। इस आयोजन में स्थानीय डीएम हाई स्कूल में पढ़ने वाले वाले विद्यार्थियों की मुख्य भूमिका थी। मंच की कोई व्यवस्था नहीं थी, सो विद्यार्थियों ने पेड़ पर चढ़कर भाषण दिया और लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट किया। सभा के दौरान ही शेखपुरा थाने में बैठे अंग्रेजी सिपाहियों को इसकी जानकारी हो गई। अंग्रेज सिपाहियों ने लुल्ही बगीचा पहुंचकर निहत्थे लोगों पर लाठी व डंडे की बरसात कर दी। इसमें एक सौ से अधिक लोग घायल हो गए और डेढ़ दर्जन से अधिक युवकों को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में कई युवक अंग्रेजी सिपाहियों की गिरफ्त से छूट गए, मगर कोसरा गांव के मेदनी शर्मा और जियनबीघा के रामेश्वर महतो को मुंगेर जेल भेज दिया गया। बाद के आंदोलन में लोगों का उत्साह बढ़ाने और एकजुट करने के लिए 1946 में सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान व डा़ राजेंद्र प्रसाद भी शेखपुरा आए। डा़ राजेंद्र प्रसाद ने स्थानीय डीएम हाइस्कूल में लोगों के साथ बैठक की और बैलगाड़ी से शेखपुरा के दक्षिणी तथा पश्चिमी क्षेत्र के गांवों का दौरा किया। स्वतंत्रता आंदोलन में शेखपुरा बाजार के दुखीलाल, बेचू राम, नारायण महतो, लखन लाल वर्मा, बैजनाथ मिश्रा, बालेश्वर प्रसाद वर्मा व रामेश्वर प्रसाद महतो ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। उस समय शेखपुरा बाजार के साथ मेहूस, हसौरी, कैथमा, कसार, हुसैनाबाद, चाड़े, जियन बीघा, माफो व चितौरा स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य केंद्र हुआ करता था।

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